मंगलवार, 16 जून 2015

चश्मा

 चश्मा कितना भी सुंदर हो
आंखे कितनी भी कमज़ोर
चश्मे का मतलब दो नयी आंखों का होना नहीं होता
इसके अलावा
सही नंबर का चश्मा जरूरी है
सही नंबर की आंखो पर
सही नंबर की दुनिया देखने के लिए
चश्मे से दुनिया साफ दिख सकती है
सुंदर नहीं
कई तरह के चश्मे लगाकर भी नहीं।
आंखे नहीं हो पहली जैसी
और दुनिया हो भी
तब भी नहीं। 

निखिल आनंद गिरि

1 टिप्पणी:

  1. बेह्तरीन अभिव्यक्ति !सुन्दर व सार्थक रचना ,शुभकामनायें
    कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार...

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