उसकी भी क्या है ज़िंदगी देखो
रोज़ करता है खुदकुशी देखो
यूं तो कई आसमान हैं उसके,
खो गई है मगर ज़मीं देखो
यूं भी क्या ख़ाक देखें दुनिया को
जो ज़माना कहे, वही देखो
कल कोई आबरू लुटी फिर से,
आज ख़बरों में सनसनी देखो
जाते-जाते वो छू गया मुझको
दे गया अनकही खुशी देखो
सबके कहने पे जिये जाता है
कितना बेबस है आदमी देखो
बारहा जिसको भूलना था 'निखिल'
याद आता है फिर वही देखो...
रोज़ करता है खुदकुशी देखो
यूं तो कई आसमान हैं उसके,
खो गई है मगर ज़मीं देखो
यूं भी क्या ख़ाक देखें दुनिया को
जो ज़माना कहे, वही देखो
कल कोई आबरू लुटी फिर से,
आज ख़बरों में सनसनी देखो
जाते-जाते वो छू गया मुझको
दे गया अनकही खुशी देखो
सबके कहने पे जिये जाता है
कितना बेबस है आदमी देखो
बारहा जिसको भूलना था 'निखिल'
याद आता है फिर वही देखो...
यूं तो कई आसमान हैं उसके,
जवाब देंहटाएंखो गई है मगर ज़मीं देखो
कल कोई आबरू लुटी फिर से,
आज ख़बरों में सनसनी देखो
जाते-जाते वो छू गया मुझको
दे गया अनकही खुशी देखो
प्यारी गज़ल
थी तो शाम से ही लैपटॉप पर प्यारी गज़ल
जवाब देंहटाएंपढ़ा इतनी रात गये! अपनी बदनसीबी देखो
बढ़िया गजल. मकता पढ़ कर ग़ालिब का शेर याद करा दिया निखिल:
जवाब देंहटाएंमुहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
achcha hai
जवाब देंहटाएंवाह निखिल साहब, वाह...क्या बात है..
जवाब देंहटाएंबारहा जिसको भूलना था निखिल
याद आता है फिर वही देखो
बहुत ख़ूबसूरत लाइन है भाई...
yaad aata hai fir wahi dekho
जवाब देंहटाएंBahut khub Nikhil
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी गजल है मेरे दोस्त...
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