दुख का झूला,सुख का झूला
ज़िन्दगी देखे है मैने ख्वाब अक्सर
दायरे से पार जाकर
एक बचपन बेलिबास,
सुस्त चाल, पस्त उसका हौसला है,
और दूजा बान्ध फ़ीते स्कूल जाने को चला है,
इधर नन्ही-सी कली आन्चल मे गुमसुम मुस्कुराती है,
उधर सुख का हाथ थामे ज़िन्दगी स्कूल जाती है,
मा की गोदी से निकलकर खो गया बचपन
बडॆ होकर हमने सीखा-
कभी पत्ते फ़ेकना और कभी पन्क्चर बनाना,
हो न पाया मा के साथ रिक्शे मे कभी स्कूल जाना
काश! अपने भी नसीबा मे हुई होती किताबे, दोस्त, सखी-सहेली,
खैर!!! अपनी भी दुनिया अलबेली,
काश! कोई रास्ता गुलशन भरा हो,
अपने धुन्धले ख्वाब का भी rang बदले,
सुख का पौधा फ़िर हरा हो,
रास्ता खुशियो भरा हो
और किस्मत मुस्कुराकर हाथ अपने एक दिन आगे badhaaye,
काश! दुख भरा बचपन कभी स्कूल जाये.....
काश!! ज़िन्दगी एक ही झूले पे दोनो गीत गाये,
सुख भरे भी, दुख भरे भी..........
काश.....................
निखिल आनन्द गिरि
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ये पोस्ट कुछ ख़ास है
ग़लत पता
ओ मृत्यु! तुम क्या किसी गलत द्वार आई थी हमने तो नहीं बुलाया था तुम्हें न ही दरवाज़े पर थी किसी दस्तक की आवाज़ दबे पांव कौन आता है संगिनी के ...
-
कौ न कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए....बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं....इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं....मन करता है रोज़ ...
-
छ ठ के मौके पर बिहार के समस्तीपुर से दिल्ली लौटते वक्त इस बार जयपुर वाली ट्रेन में रिज़र्वेशन मिली जो दिल्ली होकर गुज़रती है। मालूम पड़...
-
हिंदी सिनेमा में आखिरी बार आपने कटा हुआ सिर हाथ में लेकर डराने वाला विलेन कब देखा था। मेरा जवाब है "कभी नहीं"। ये 2024 है, जहां दे...
hey!
जवाब देंहटाएंawesome nikhil....u people r doing a great job by creating this blog.......BRAVO MAN!!