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'इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी' - सी भास्कर राव की समीक्षा
जाने-माने साहित्यकार सी. भास्कर राव सर जमशेदपुर में मेरे टीचर रहे हैं। बेहद सौम्य, शालीन और मृदुभाषी। उन्हें अपनी कविताओं की किताब भेजी तो बदले में उन्होंने ये मेल भेजकर और कर्ज़दार कर दिया। ऐसे भी कोई लिखता है क्या। आज उनका जन्मदिन है तो सोचा अपने ब्लॉग पर यह समीक्षा लगाकर अपने गुरु को थोड़ा सम्मान दिया जाए।
प्रियवर
निखिल,स्नेह|
मैंने
आपके प्रथम कविता संग्रह की सारी कविताएं मनोयोग से पढ़ीं|
आशीष
सहित मैं इस बात के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने अपनी श्रेष्ठ
कविताएं पढ़ने का एक दुर्लभ अवसर मुझे प्रदान किया|
सच
तो यह है कि मैं बहुत कम कविता संग्रह ही पढ़ पाया हूँ,शायद इसलिए भी कि मैं मूलत:
एक गद्य लेखक हूँ और गद्य रचनाएं ही अधिक पढ़ने का अवसर मिलता रहा है| किसी युवा
कवि के प्रथम कविता संग्रह पढ़ने का अवसर भी बहुत कम मिला है,लेकिन पूरी ईमानदारी
से कह सकता हूँ कि इससे पूर्व किसी युवा कवि का इतना प्रखर और प्रभावशाली संग्रह
कभी पढ़ने को नहीं मिला|सुप्रसिद्ध साहित्यकार सी. भास्कर राव
सारी
कविताएं पढने के बाद यह अनुभव किया कि ये ऐसी कविताएं नहीं हैं,जिन्हें एक बार पढ़
लेने मात्र से उनकी गहराई और गंभीरता को पूरी तरह अनुभव किया जा सके,बल्कि उन्हें
कई-कई बार पढ़ने की आवश्यकता है ताकि उनकी परतों और तहों को समझा जा सके|
समस्त
कविताएं मुझे अत्यंत संवेदनशील,सार्थक,सघन और नितांत सामायिक प्रतीत हुईं|
इन
कविताओं में जो तेवर है,तल्खी है,तीव्रता है,वह किसी भी संवेदनशील पाठक को झकझोरने
में समर्थ है|
कथ्य
और शिल्प की दृष्टि से सभी कविताएं,चाहे वे छोटी हों या किंचित लम्बी,अपने आप में परिपक्व
और प्रौढ़ हैं| कोई भी कविता किसी जागरूक मन को बिना स्पर्श किए रह जाए,यह कतई संभव
नहीं है|
ये
सारी कविताएं आज के समय और समाज की परतों को उघेड़ने में जितनी सक्षम हैं,उन्हें
सीधे छेदने और भेदने में भी उतनी ही सामर्थ्यवान तथा संभावनापूर्ण हैं|
आज
के समाज के छल-छद्म की जो चीर-फाड़ इन कविताओं में हुई है,वह अपनी नंगी आँखों से
किसी लाश के निर्मम पोस्टमार्टम को देखते हुए भीतर से छलनी होने जैसा है|
सच
तो यह है कि हर कविता अपने आप में एक मिसाइल की तरह है,जिसकी अपनी-अपनी मारक
क्षमता है,जिससे कोई बचना चाहकर भी नहीं बच सकता है|
कई
कविताएं हमें अपने बौनेपन,नंगेपन और नपुंसकता का तीखा एहसास कराती हैं| साथ ही
अपनी असमर्थता,असहायता,अवशता का भी| ये कविताएं हमें अपनी बेबसी और अपनी बेचारगी से रूबरू कराती हैं|
कविताएं
जिस हद तक पाठकों के मन पर अपना प्रभाव डालती हैं,उसी हद तक उनके मस्तिष्क पर
प्रहार भी करती हैं| हर कविता का हर भाव किसी न किसी वैचारिक चेतना को अभिव्यक्त
करने में समर्थ है| कथ्य और शिल्प का तथा भाव और विचार का जो सामंजस्य इन कविताओं
में मिलता है,वह उनके समग्र प्रभाव को कई गुना बढ़ा देता है|
खासकर
कविताओं का विचार पक्ष,जो अपनी पूरी बौद्धिक क्षमता के साथ मौजूद है,पढ़ने वाले को बेचैन
करता है और भीतर तक हिला कर रख देता है,जिससे मन विचलित और आंदोलित हो उठता है|
व्यक्तिगत
जीवन प्रसंगों से लेकर सामाजिक और राजनैतिक प्रसंगों तक तथा उससे भी आगे जाकर
सार्वजनीन प्रसंगों तक इनमें जो गहरी विवेचना और सघन विश्लेषण मिलता है,वह अचंभित
कर देता है कि क्या सचमुच ये कविताएं किसी युवा कवि के प्रथम कविता संग्रह की है!
प्रियवर
इन सारी कविताओं को पढ़ने के बाद यही महसूस किया कि कविताओं में जो गंभीरता और
गहराई है,उस पर टिप्पणी करने की अर्हता सचमुच
मुझमें नहीं है|
सचाई
यह है कि मैं पिछले लगभग पचास वर्षों से लिख छप रहा हूँ,लेकिन कन्फेस करता हूँ कि
अपने आज तक के समस्त लेखन-प्रकाशन पर आपकी यह कविता संग्रह बहुत-बहुत भारी पड़ता
है|
मेरे
एक दिवंगत पूज्य गुरुदेव कहा करते थे कि कोई गुरु जब अपने शिष्य से हार जाए,तो
समझो कि वह गुरु की सबसे बड़ी जीत है| आपकी कविताओं को पढ़ने के बाद आज मैं शिद्दत
से महसूस करता हूँ कि मैं अपने पुत्रवत शिष्य निखिल आनन्द गिरि से हार कर स्वयं को
विजयी और गौरान्वित अनुभव कर रहा हूँ,जिसका प्रमाण है- आपका यह प्रथम कविता संग्रह
“ इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी “
पुन:
एक बार हार्दिक बधाई,असीम शुभकामनाएं एवं अशेष आशीष| इसलिए कि इन्हें पढ़कर मैं
धन्य-धन्य हुआ| यह संग्रह नहीं पढ़ पाता तो निश्चय ही समकालीन जीवन के खुरदुरे
यथार्थ और बेरहम सचाई के साक्षात्कार से वंचित रह जाता|
सी.भास्कर राव.
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मौन अकेली इक भाषा है, जिसके लुप्त होने का कोई ख़तरा नहीं!
''दुनिया की सबसे छोटी कविता लिखनी हो
तो लिखा जाना चाहिए –
पृथ्वी’’
ज्योतिकृष्ण वर्मा
जी के कविता संग्रह ‘मीठे पानी की मटकियां’ में इस तरह की कई छोटी और प्रभावी कविताएं हैं।
कविताओं से अधिक क्षणिकाएं कहना बेहतर रहेगा। पूरे संग्रह में क़रीब 70 कविताएं
होंगी, जिनका आकार इसी तरह का है। संपादित, साफ-सुथरी, शांत, गंभीर, छोटी-छोटी
कविताएं। कहीं कोई अतिरिक्त शब्द नहीं। कविताएं लिखने का मेरा अनुभव और मिज़ाज इस
संग्रह से थोड़ा अलग है, इसीलिए पूरा पढ़ने का आकर्षण बना रहा।
प्रकृति के कई रंग-
जैसे नदी, मौसम, पहाड़, नारियल से लेकर शहर के तमाम रंग इस किताब में मौजूद हैं।
कवि के शब्दों में ही कहें तो –
‘इस किताब को खोलते समय
सिर्फ पन्ने ही नहीं
खुलते इसके
खुल जाती हैं
ज्योतिकृष्ण वर्मा जी का कविता संग्रह |
नदियां, आकाश,
समंदर...
दिख जाते हैं
ऊंची उड़ान भरते पंछी
लहलहाते खेत, पेड़ों
पर लौटता वसंत
गुलाब की टहनी पर
चटखती कलियां
आंगन में खिली धूप
चूल्हे पर रखी हांडी
स्कूल जाते बच्चे
घर संवारती औरत...’ (कविता – सिरहाने)
इस कविता संग्रह में
कई पंक्तियां हैं, जिनमें भरपूर चित्रात्मकता है। ये कवि की सबसे बड़ी ख़ूबी है,
जो पूरी कविता में बार-बार उभर कर सामने आती है। जैसे संग्रह की पहली कविता ‘पेड़’ से ये पंक्तियां –
‘काश!
कोई दिव्य बालक
छिपा देता कुल्हाड़ी
कहीं दूर
मनुष्य की पहुंच से।‘
यहां मनुष्य और
दिव्य बालक अलग हो गए हैं। मेरे ज़ेहन में कोई आदिवासी बालक आता है जिसके हाथ में
कुल्हाड़ी है और पेड़ों के लिए आदर।
ऐसे ही एक कविता का
चित्र देखिए –
‘मेरे शहर में आ जाए
चहचहाती गौरेया
मैं हटा दूंगा
गेट पर टंगा बोर्ड
‘किराये के लिए मकान खाली है’ (कविता-रंग)
इस संग्रह को इसीलिए
पढ़ना चाहिए कि सीखा जाए कि कम शब्दों में असर कैसे बनाए रखा जाता है। बिना किसी विशेष
अलंकार या तामझाम के। ‘आशियाना’, ‘कभी-कभार’, ‘निवेदन’ जैसी कविताएं कुल 15-20 शब्दों की हैं, मगर काफी समय तक
याद रहने वाली हैं –
‘उसने कोर्ट में अर्ज़ी दी है
अपनी पत्नी से तलाक
के लिए
अन्य जानकारी के
कॉलम में
उसने लिखवाया था एक
जगह –
होम मेकर’ (कविता - ‘निवेदन’)
किसी भी कविता संग्रह
की तरह इसमें मां पर कुछ अच्छी क्षणिकाएं भी हैं। एक भावुक कविता पिता पर भी है जो आम
तौर पर कम पढ़ने को मिलती हैं।
‘बोधि प्रकाशन’ से आई ये कविता पढ़ने और सहेजने लायक है। आज की कविताओं को जो स्वर है, उनसे अलग। छोटी कविताएं हैं तो युवाओं और मोबाइल पर शायरी फॉरवर्ड करने वालों के लिए भी ये बेहतर विकल्प है जहां कुछ पंक्तियों में ही आपका संदेश आगे जा सकता है। अष्टभुजा शुक्ल के शब्दों में कहें तो- ‘मीठे पानी की मटकियां’ की ये कविताएं निश्चय ही पाठकों के हलक को तर और तृप्त करेंगी।'
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