सुबह के जिस
अख़बार में चमक रहा था
आधे पेज के सरकारी विकास का
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वही अख़बार देखकर पूछा लड़की
ने
ये सामूहिक बलात्कार क्या
होता है?
पिता ने छठी मंज़िल से कूदकर
खुदकुशी कर ली
लड़की की उम्र सात साल थी।
उस शहर का नाम कुछ भी रख
लीजिए
जहां एक दिन सब सरकारी अस्पतालों में,
निकाले गए थे मरीज़ों के गर्भाशय
और फिर बेच दिये थे सरकारी
बाबुओं ने।
गर्भाशय की ख़ूबसूरत तस्वीर
छापी थी अख़बार ने,
और अख़बार सबसे ज़्यादा बिका
था।
हमारी लाशो में मसाले भरकर,
साबुत रखी जाती
हैं लाशें
ख़ूब रंगीन नज़र आते हैं अख़बार
बौराने लगता है माथा
इतनी आती है सड़ांध
मगर शुक्र है टिशु पेपर का
ज़माना है।
जिस दारोगा ने एक औरत को
चौकीदार बनाने का लालच देकर
थाने में ही सामूहिक बलात्कार
किया
और फरार हो गया
उसकी जगह किसकी हाथों में डाली
गई हथकड़ी?
जिस चौराहे पर एक लड़की का
जुर्म बस इतना था
कि वो अकेली चल रही थी रात
में
बेरहमी से मसली गई,
कुचली गई और नंगी कर दी गई
किसके छपे पोस्टर
अपराधियों के नाम पर,
एक चेहरा आपका तो
नहीं?
व्यवस्था अगर नहीं हो सकती
बेहतर
तो बेहतर है बदल दी जाए
व्यवस्था
जहां-जहां नहीं पहुंच पाती
पुलिस
और बलात्कार आराम से होते हैं
उन शरीफ मोहल्लों में
लाउडस्पीकर लगाकर पहले बकी
जाएं गालियां
और फिर वंदे मातरम
और ये भी कि,
औरत की गोलाइयों के बाहर भी
दुनिया गोल है।
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