वो टोटो पर बैठकर प्रेमगीत लिखने के दिन थे
जब इस पृथ्वी पर आखिरी बार हम मिले थे
तब भी अनार का भाव सौ रुपए से ऊपर था
और अंगूर भी खट्टे लेकिन महंगे थे
और संतरे अभी अभी बाज़ार में आए ही थे
और जेब में पैसे कम थे
एटीएम कार्ड ज़्यादा।
हम पहली बार की तरह ही आख़िरी बार मिले
थोड़ी देर हंसने का अभिनय करते हुए
लड़ते रहे मुख़्तसर सी मुलाकात में।
हम किन बातों के लिए लड़े थे!
कि मेरा फोन तीन बार नहीं उठाया गया
कि मुझे अब भी उसकी बीमारी से अधिक फ़िक्र
उसकी ज़िद से थी
कि उसे हवाई जहाज़ में घूमना है।
हमारे बीच एक रेंगता हुआ समय था
जो अचानक अपने कदमों पर उठ खड़ा हुआ था
यह हमारी आख़िरी मुलाकात थी
और मैं पहली बार ज़मीन चाटते हुए
अपने बच्चे से मिला था।
वह युद्ध की मार झेलकर भूखा नहीं था
बीमार मां की लाचारी में भूखा था
फिर भी मुस्कुरा रहा था।
वह ईद की सुबह थी जब हम मिले
मालदा के इलाके में तब इतना दंगा नहीं था
राजा महंगे कपड़े पहने इतना नंगा नहीं था।
वह बीमार थी और कहीं भी अस्पताल नहीं थे
उसकी आंखों में अब कोई सवाल नहीं थे।
उसे मेरे साथ आना था
मगर मेरे पास कोई और बहाना था।
उस आखिरी मुलाकात की याद जाती नहीं
किसी बारिश में धुलती नहीं
कोई गर्मी उसे सुखाती नहीं।
क्या संसार की सब अंतिम मुलाकातें
इतनी ही अधूरी, इतनी ही उदास होती हैं
वह धरती पर नहीं है,
यह दुख कम बड़ा है
दुख वो ज़ालिम याद है,
जिसमें मेरे पास सबसे ख़राब पैसेंजर ट्रेन में लौटने के सौ बहाने हैं
और कोई बीमार, पूरी नाउम्मीदी में भी
हाथ बांधे खड़ा है।