गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

आख़िरी मुलाक़ात

वो टोटो पर बैठकर प्रेमगीत लिखने के दिन थे
जब इस पृथ्वी पर आखिरी बार हम मिले थे
तब भी अनार का भाव सौ रुपए से ऊपर था
और अंगूर भी खट्टे लेकिन महंगे थे
और संतरे अभी अभी बाज़ार में आए ही थे
और जेब में पैसे कम थे
एटीएम कार्ड ज़्यादा।

हम पहली बार की तरह ही आख़िरी बार मिले
थोड़ी देर हंसने का अभिनय करते हुए
लड़ते रहे मुख़्तसर सी मुलाकात में।
हम किन बातों के लिए लड़े थे!
कि मेरा फोन तीन बार नहीं उठाया गया
कि मुझे अब भी उसकी बीमारी से अधिक फ़िक्र 
उसकी ज़िद से थी
कि उसे हवाई जहाज़ में घूमना है।

हमारे बीच एक रेंगता हुआ समय था
जो अचानक अपने कदमों पर उठ खड़ा हुआ था
यह हमारी आख़िरी मुलाकात थी
और मैं पहली बार ज़मीन चाटते हुए 
अपने बच्चे से मिला था।
वह युद्ध की मार झेलकर भूखा नहीं था
बीमार मां की लाचारी में भूखा था
फिर भी मुस्कुरा रहा था।

वह ईद की सुबह थी जब हम मिले
मालदा के इलाके में तब इतना दंगा नहीं था
राजा महंगे कपड़े पहने इतना नंगा नहीं था।
वह बीमार थी और कहीं भी अस्पताल नहीं थे
उसकी आंखों में अब कोई सवाल नहीं थे।
उसे मेरे साथ आना था
मगर मेरे पास कोई और बहाना था।

उस आखिरी मुलाकात की याद जाती नहीं
किसी बारिश में धुलती नहीं
कोई गर्मी उसे सुखाती नहीं।
क्या संसार की सब अंतिम मुलाकातें 
इतनी ही अधूरी, इतनी ही उदास होती हैं

वह धरती पर नहीं है, 
यह दुख कम बड़ा है
दुख वो ज़ालिम याद है, 
जिसमें मेरे पास सबसे ख़राब पैसेंजर ट्रेन में लौटने के सौ बहाने हैं
और कोई बीमार, पूरी नाउम्मीदी में भी
हाथ बांधे खड़ा है।
निखिल आनंद गिरि

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2025

मौन रहिए

वो तीन में भी हैं
और तेरह में भी
शाम में भी
सवेरे में भी

आप कहिए कि एक नई किताब लिखनी है
वो कहेंगे किताबे तो हमने कई लिखी
इतनी लिखी कि नाम भी याद नहीं सबके

कहिए कि अख़बार में छपी है फलाने की फोटो
तो बोलेंगे कि ये सब कब का छोड़ दिया हमने
एक पेज मेरी ही तस्वीरों से छपा करते थे अख़बार 
पूछिए किस नाम का था अख़बार 
तो कहेंगे बताएंगे अगली बार

आप कहिए कि भोपाल एक अच्छा शहर है 
पहली बार गया मैं
कहेंगे पहली बार तो मैं गया था भोपाल
गया से थी मेरी ट्रेन
जब जाते ही झीलें भर गई थीं बारिश से
फल्गू नदी तभी पहली बार सूखी 
या फिर बशीर बद्र ने फलां शायरी उन्हीं के स्वागत में लिखी थी

कहिए कि मुझे सीने में दर्द की शिकायत है
वो कहेंगे सीने में दर्द क्या होता है
अजी इस युवा जीवन में तीन बार दिल का दौरा पड़ा
खड़ा हूं अब तक अपने पैरों पर
ये खड़प्पन है मेरा।

आप कहिए
कहिए मत कहने के लिए सांस भी लीजिए
तो कहेंगे सांस तो हम..

आप कहेंगे आंख
वो रतौंधी
नाक
तो नकसीर
आप कहेंगे पेट
वो कहेंगे बवासीर

बेहतर है आप कुछ न कहिए 
मौन रहिए
क्योंकि उन्होंने सिर्फ शोर करना सीखा है
मौन की भाषा में निरक्षर हैं
वह नहीं जानते कि समय शोर करने वालों का नहीं
समय आने पर बोलने वालों का ही होता है।

निखिल आनंद गिरि

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

बसंत का शोकगीत

हर बसंत
जब पत्ते खुश दिखते हैं
पेड़ खुश दिखते हैं
हवा संगीत बनकर कानों तक पहुंचती है
पुरवा पछुआ एक साथ दोनों कानों से
आत्मा के तार को छूते हैं 
मैं तुम्हारी यादों के साथ बसंत को उदास करता हूं

किसी को उदास करना ठीक नहीं 
जानता हूं मगर
इस दुनिया ने ठीक वही किया मेरे साथ
उस बसंत जब एक पीली साड़ी वाली लड़की
मेरा मौसम बदलने आई थी
और उसने कहा था हम हर बसंत इसी तरह खिलखिलाएंगे

जैसे दो बच्चे आपस में हंसते हैं
जैसे चिड़िया चावल के दाने पाकर चहचहाती है
जैसे मेरी बूढ़ी दादी, जो बीड़ी को, खुराकी कहती थी
मेरी डांट के साथ बीड़ी का बंडल पा चहक उठती थी

मेरे जीवन का बसंत अब सूना है
मेरी हंसी के पत्ते 
अस्पतालों के चक्कर खा कर बिखर गए
मेरी उम्मीदों के पेड़ की जड़ें
जिसके नीचे 
दो प्राणी गरम जिलेबी खाकर मिलते थे
कीमो की दवाओं से नष्ट हो गईं।

वह लड़की जो पीली साड़ी में मेरे साथ
मेट्रो की सीढ़ियों पर भी चढ़ने से कतराती थी
अकेले बहुत दूर जा चुकी है
कुछ दूर कंधों पर
फिर ढुलमुल करते ट्रैक्टर पर
फिर ज़मीन पर लकड़ियों की एक गाड़ी
जिसमें आग लगी
फिर पानी की गाड़ी पर अनंत यात्रा

यह दुनिया जिसने हमें आशीष दिया था 
उसी ने लकड़ियों से धकेल कर 
उसे स्त्री से राख बना डाला 

पुरवा हवाओं से भरी दुनिया में 
जीना तो चाहता हूं 
दुनिया से नज़रें मिलाना नहीं चाहता

निखिल आनंद गिरि

शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

ठंडी प्रेम कथाएं

लड़की जितनी सुंदर है, लड़के की ख़िदमत में उससे कहीं ज़्यादा सुंदर महसूस कर रही है। इस ठंड में लड़की ने इतने कपड़े पहने हैं जैसे पूरे महीने की ठंड से एक साथ लड़ रही हो। 

लड़का बस उसकी हथेली पकड़े हुआ है और पैर में चप्पल है। शर्ट के दो बटन खुले हैं और मफलर टोपी के बिना सदियों से जीता आ रहा है। लड़की मुस्कुरा रही है, यानी उसे भूख लगी है।

लड़के ने एक चिप्स का पैकेट पास कर दिया है।
मजाल है कि लड़के को एक दाना भी नसीब हो। 

लड़की आखिर में फिर मुस्कुराती है और लड़के को ख़ाली रैपर पकड़ा देती है। लड़का उसे अपने दिल के पास वाले पैकेट में रख चुका है।

लड़की अब लड़के में नहीं, मोबाइल में व्यस्त है। मुस्कुरा रही है

निखिल आनंद गिरि


रविवार, 26 जनवरी 2025

शोर करने वालों से सावधान

वो तीन में भी हैं
और तेरह में भी
शाम में भी
सवेरे में भी

आप कहिए कि एक नई किताब लिखनी है
वो कहेंगे किताबे तो हमने कई लिखी
इतनी लिखी कि नाम भी याद नहीं सबके

कहिए कि अख़बार में छपी है फलाने की फोटो
तो बोलेंगे कि ये सब कब का छोड़ दिया हमने
एक पेज मेरी ही तस्वीरों से छपा करते थे अख़बार 
पूछिए किस नाम का था अख़बार 
तो कहेंगे बताएंगे अगली बार

आप कहिए कि भोपाल एक अच्छा शहर है 
पहली बार गया मैं
कहेंगे पहली बार तो मैं गया था भोपाल
गया से थी मेरी ट्रेन
जब जाते ही झीलें भर गई थीं बारिश से
फल्गू नदी तभी पहली बार सूखी 
या फिर बशीर बद्र ने फलां शायरी उन्हीं के स्वागत में लिखी थी

कहिए कि मुझे सीने में दर्द की शिकायत है
वो कहेंगे सीने में दर्द क्या होता है
अजी इस युवा जीवन में तीन बार दिल का दौरा पड़ा
खड़ा हूं अब तक अपने पैरों पर
ये खड़प्पन है मेरा।

आप कहिए
कहिए मत कहने के लिए सांस भी लीजिए
तो कहेंगे सांस तो हम..

आप कहेंगे आंख
वो रतौंधी
नाक
तो नकसीर
आप कहेंगे पेट
वो कहेंगे बवासीर

बेहतर है आप कुछ न कहिए 
मौन रहिए
क्योंकि उन्होंने सिर्फ शोर करना सीखा है
मौन की भाषा में निरक्षर हैं
वह नहीं जानते कि समय शोर करने वालों का नहीं
समय आने पर बोलने वालों का ही होता है।

निखिल आनंद गिरि

गुरुवार, 9 जनवरी 2025

डायपर

नींद न आने की कई वजहें हो सकती हैं
किसी प्रिय का वियोग 
बुढ़ापे का कोई रोग
या आदतन नहीं सोने वाले लोग

नवजात बच्चों के बारे में सोचिए
मां न भी हो तो पिता सुला लेगा
जैसे तैसे थपकी देकर
थोड़ा भीतर का पुरुष पोंछ कर 
कोई आधी याद की लोरी के साथ

अगर ईश्वर है तो किसी बच्चे को
नींद न आने की कोई वजह न दे
अगर नहीं आ सकता ईश्वर
हर बच्चे की थपकी से पहले
तो कम से कम कोई रत्न
या मिथकों में पढ़ा कोई कवच ही दे दे

डायपर! क्या तुम ईश्वर का बनाया कवच हो
जिसकी मियाद कुछ घंटों की होती है
जिसमें बच्चा ले सके पूरी नींद
और बतिया सके ईश्वर से?

नहीं, तुम ईश्वर का अंश नहीं हो सकते
होते तो तुम्हें बिना कीमत होना चाहिए था
सर्वसुलभ
यत्र यत्र सर्वत्र।


निखिल आनंद गिरि

मंगलवार, 7 जनवरी 2025

मर्दानगी

मेरे भीतर एक मर्द है
जो गुस्से में मां को भी माफ नहीं करता ।
एक मर्द है जो दिन भर अभिनय करता है
मर्द होने का।

बेटी को पुचकारता है 
हंसता खेलता है
और फटकारता है
अपने भीतर के मर्द को और संवारता है।

वह दिन भर पसीना बहाता है
पैसे कमाता है
गाड़ी चलाता है 
ज़िम्मेदार मर्द होने का फ़र्ज़ निभाता है।

उसे चाय गरम चाहिए
पत्नी या प्रेमिका का 
स्वभाव नरम चाहिए।
वह मर्द है हर घड़ी
इसका भरम चाहिए।

रात के आखिरी पहर
वह बिस्तर पर जाता है
मर्द का केंचुआ उतारकर
एक अंधेरी सुरंग में छिप जाता है

वहां कुछ अनजान चेहरे हैं
जहां वह मन लगाता है
फिर अचानक आईने में 
अपना चेहरा देख डर जाता है

अब वह एक नकली पुतला है
अपनी ही परछाई का जला है
न चेहरे पर जादू है, न कोई चमत्कार है
अपनी ही मर्दानगी का भयानक शिकार है 

निखिल आनंद गिरि

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

आख़िरी मुलाक़ात

वो टोटो पर बैठकर प्रेमगीत लिखने के दिन थे जब इस पृथ्वी पर आखिरी बार हम मिले थे तब भी अनार का भाव सौ रुपए से ऊपर था और अंगूर भी खट्टे लेकिन म...