गुरुवार, 23 जून 2016

घर

मैं आज छुट्टी पर हूं
मगर इस तरह ही मनाना होगा
जैसे घर का कोई ज़रूरी काम हो

मैं खुश हूं
मगर इस तरह कहना होगा
जैसे घरवालों के साथ
किसी सत्यनारायण कथा में जाने को लेकर खुश हूं

मैं नहा रहा हूं
ये बताने में भी घर का होना ज़रूरी है
खेत या नदी या समंदर में नहाना
एक नौकरी में आने के बाद खामखयाली है।

किसी चलताऊ कवि से पूछिए
वो बिना किसी तर्क के कहेगा-
दुनिया में होने का मतलब
घर में होना होता है।
आपका खाना, पहनना, सुबह से शाम होना
घर के रिमोट से चलता है।

घर इस तरह होता है जीवन में
जैसे बच्चे के मुंह में दूध
दिल्ली के मुंह में गाली
कश्मीर में होती है पुलिस
बुरी फिल्मों में मां
अलां के बाद फलां।

घर के बारे में
इतना सब कुछ अच्छा कहने के बाद भी
नहीं मिल पाती घर में रोने की एक अदद जगह।

रोना फिर भी एक सच है
रोती आंखों के सामने दुनिया एक भ्रम है
भ्रम को इस तरह भी कहा जा सकता है
जैसे आज मेरी प्रेमिका का जन्मदिन है
जो जीवन का हिस्सा है


मगर मेरे घर का हिस्सा नहीं है।

निखिल आनंद गिरि

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