एक पतंग थी
तीन दिशाएं थीं..
तीन दिशाओं में उड़ गईं तीन पतंगे थीं...
एक सपना था
तीन सपने थे
तीन सपनों के बराबर एक सपना था....
एक मौन था
एक रात थी
तीन युगों के बराबर एक रात थी
एक ख़ालीपन भर गया रात में
फिर मौन तिगुना हो गया
अंधेरे भर गए तीन गुना काले
एक रिश्ता खो गया उस रात में
ढूंढ रही हैं तीन जोड़ी आंखें...
एक-दूसरे से टकरा जाएंगी एक दिन अंधेरे में।
निखिल आनंद गिरि
तीन दिशाएं थीं..
तीन दिशाओं में उड़ गईं तीन पतंगे थीं...
एक सपना था
तीन सपने थे
तीन सपनों के बराबर एक सपना था....
एक मौन था
एक रात थी
तीन युगों के बराबर एक रात थी
एक ख़ालीपन भर गया रात में
फिर मौन तिगुना हो गया
अंधेरे भर गए तीन गुना काले
एक रिश्ता खो गया उस रात में
ढूंढ रही हैं तीन जोड़ी आंखें...
एक-दूसरे से टकरा जाएंगी एक दिन अंधेरे में।
निखिल आनंद गिरि
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