गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

एक छोटी-सी ऑड-इवेन लव स्टोरी

ये बता पाना मुश्किल है कि प्यार पहले लड़की को हुआ या लड़के को, मगर हुआ। एक ऑड नंबर की कार से चलने वाली लड़की और इवेन नंबर से चलने वाले लड़के को आपस में प्यार हो गया। ऐसे वक्त में हुआ कि मिलने की मुश्किलें और बढ़ गईं। पहले सिर्फ घर से निकलने की दिक्कत थी, अब दिक्कत ये कि ऑड वाले दिन लड़की को पैदल, फिर रिक्शा और फिर मेट्रो से लड़के तक पहुंचना होता था। इवेन वाले दिन लड़के को यही सब करना पड़ता था।

अपनी प्रेम कहानियों की रक्षा स्वयं करें!
यह प्यार किसी और शहर या किसी और राजनैतिक दौर में हुआ होता तो वो रोज़ मिलते। ट्रैफिक जाम में घंटे भर फंसकर भी खुश होते। कोई दूसरी गाड़ी उनकी हेडलाइट या गाड़ी के किसी हिस्से को छू जाती तो भी एक-दूसरे को मुस्कुराकर रह जाते। शीशा चढ़ा लेते जब सामने की गाड़ी वाला ग़लत ट्रैफिक सिग्नल क्रॉस कर रहा होता और उन्हें घूर कर देख रहा होता। किसी सेंट्रल पार्क के बाहर अपनी गाड़ी पार्क करते और घंटो बातें करते। मोदी पर, केजरीवाल पर, आलू के पकौड़ों पर। फिर मुश्किल से विदा होते, घर पहुंचते ही मोबाइल से दोनों चिपक जाते। मगर इस दौर में तो बहुत मुश्किल हो गया था ये सब। ऑड तारीखों वाले दिन लड़के का मूड ख़राब रहता और इवेन वाले दिन लड़की का।
समय गुज़रता गया। प्यार करते-करते एक दिन गुज़रा, दो दिन गुज़रे, एक हफ्ता गुज़र गया, दो हफ्ते गुज़रने ही वाले थे। दिल्ली जैसे शहर में एक प्रेम कहानी का दो हफ्ते गुज़र जाना इतिहास का हिस्सा होने जैसा था। प्रेम कहानी के चौदहवें दिन अचानक जब आठ बज गए तो इवेन कार वाले लड़के ने थोड़ा हिचकते हुए ऑड वाली लड़की से कहा, अब हम कभी नहीं मिलेंगे। मैंने दरअसल एक इवेन वाली लड़की ढूंढ ली है। तुम भी एक ऑड वाला लड़का ढूंढ लो।

लड़की थोड़ी उदास हुई फिर बोली, मेरी चिंता मत करो, मैं सीएनजी के सहारे अकेले चलना पसंद करूंगी अब से, तुम्हें नई ज़िंदगी, नया साल मुबारक

निखिल आनंद गिरि

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