शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

आखिरी यात्रा से पहले...

वो डिब्बों के साथ चलते हैं कुछ दूर तक,
कुछ शब्द और...
विदा से पहले..
कुछ प्यार और...
मुट्ठी भर किरणें सूरज की...

आंखों में अथाह अनुराग,
और लौटने की उम्मीद...
हाथ हाथ छूटने से ठीक पहले...
पलक भीगने से ठीक पहले,
गाड़ियों के शोर से ठीक पहले....

थोड़ी सी दही, थोड़ा-सा गुड़,
और थोड़ा-सा झुकना घुटनों तक,
बहुत-सा आशीष....

जो गए,
उस न लौटनेवाली दिशा में..
क्या पता आ भी जाएं एक बार...

भरोसा है बल खाती गाड़ियों पर,
वही लौटाएंगी एक दिन...
सारे बिछोह, सारे परिचित..
सारे प्रेम...
और बहुत-से सूरज...
आखिरी यात्रा से पहले....

निखिल आनंद गिरि

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सकारात्मक सोच को दर्शाता आह्वान्।

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  2. गुलज़ार टाइप की कविता.. बहुत रोमैंटिक . दर्द से भरी

    जवाब देंहटाएं
  3. गांवों से लेकर नगरों-महानगरों तक नई पीढी की जो आवाजाही है, उसके अनेक मार्मिक शब्दचित्र इस कविता में मौज़ूद हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. वही लौटाएंगी एक दिन...
    सारे बिछोह, सारे परिचित..
    सारे प्रेम...
    और बहुत-से सूरज...
    आखिरी यात्रा से पहले....

    bahut sundar .............aakihiri yaatra se pahley .really nicest one .

    जवाब देंहटाएं

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