गांव से दूर एक दरिया था,
गांव में प्यास बहुत थी लेकिन...
उनकी किस्मत में कोई पुल न हुआ।
वक्त क़ैद था मु्ट्ठी में जब,
चार फीट के दोस्त थे सब,
चार दिनों में शादी है अब !
अब तो रोना भी भूल बैठा हूं,
एक हंसी भी उधार ली मैंने
एक आदत सुधार ली मैंने ।
मेरी बस्ती में कौन आएगा,
हाल पूछेगा, चला जाएगा...
अजनबी अजनबी रह जाएगा...
पहले होती थी रुहानी बातें,
अबके क़ीमत में जिस्म सौंपा है...
आओ फिर से भरम का सौदा करें।
एक कमरे में ज़िंदगी काटी,
एक बित्ते में मौत आएगी...
ख्वाब क्यों आसमान भर देखें...
ये न पूछो कि क्या हुआ होगा,
ज़र्रा-ज़र्रा ही लुट गया होगा...
वक्त से जब वो भिड़ गया होगा ।
मेरी ख़ामोश हसरतों में रहे,
उम्र की सारी सिलवटों में रहे...
मर चुके ख़्वाब बड़े होते रहे ।
बंद कमरे में कोई वहशी था,
आईने का ही क़त्ल कर डाला...
लाल है रंग इस अंधेरे का ।
निखिल आनंद गिरि
गांव में प्यास बहुत थी लेकिन...
उनकी किस्मत में कोई पुल न हुआ।
वक्त क़ैद था मु्ट्ठी में जब,
चार फीट के दोस्त थे सब,
चार दिनों में शादी है अब !
अब तो रोना भी भूल बैठा हूं,
एक हंसी भी उधार ली मैंने
एक आदत सुधार ली मैंने ।
मेरी बस्ती में कौन आएगा,
हाल पूछेगा, चला जाएगा...
अजनबी अजनबी रह जाएगा...
पहले होती थी रुहानी बातें,
अबके क़ीमत में जिस्म सौंपा है...
आओ फिर से भरम का सौदा करें।
एक कमरे में ज़िंदगी काटी,
एक बित्ते में मौत आएगी...
ख्वाब क्यों आसमान भर देखें...
ये न पूछो कि क्या हुआ होगा,
ज़र्रा-ज़र्रा ही लुट गया होगा...
वक्त से जब वो भिड़ गया होगा ।
मेरी ख़ामोश हसरतों में रहे,
उम्र की सारी सिलवटों में रहे...
मर चुके ख़्वाब बड़े होते रहे ।
बंद कमरे में कोई वहशी था,
आईने का ही क़त्ल कर डाला...
लाल है रंग इस अंधेरे का ।
निखिल आनंद गिरि
बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ…………आपकी रचनायें मुझे हमेशा बहुत पसन्द आती हैं।
जवाब देंहटाएंविचारणीय .... बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सारे दर्द को ब्यान करती एक दर्द भरी खुबसूरत रचना |
जवाब देंहटाएंएक एक बेमिसाल!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंशादी कब की है... ?
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