रविवार, 26 सितंबर 2010

रौशनी ने कर दिया था बदगुमां...

आईने  ने जब से ठुकराया मुझे,
हर कोई पुतला नज़र आया मुझे...

रौशनी ने कर दिया था बदगुमां,
शाम तक सूरज ने भरमाया मुझे...

ऊबती सुबहों का सच मालूम था,
रात भर ख्वाबों ने बहलाया मुझे....

मैं बुरा था जब तलक ज़िंदा रहा,
'अच्छा था', ये कहके दफनाया मुझे...

जब शहर के शोर ने पागल किया,
एक भोला गांव याद आया मुझे....

ख्वाब टूटे, एक टुकड़ा चुभ गया,
देर तक नज़्मों ने सहलाया मुझे....

निखिल आनंद गिरि

13 टिप्‍पणियां:

  1. मेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.

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  2. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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  3. Bahut hi badhiya...
    aaine ne jab thukraya mujhe
    har koi putla nazar aaya mujhe

    जवाब देंहटाएं
  4. मैं बुरा था जब तलक ज़िंदा रहा,
    'अच्छा था', ये कहके दफनाया मुझे...


    भई ..वाह ..खूब लिखा है.
    दिल को छू लिया आपकी रचना ने .
    आभार .

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  5. हर शेर ज़बरदस्त. भला मैं क्या कहूँ.

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  6. जब शहर के शोर ने पागल किया,
    एक भोला गांव याद आया मुझे....
    जी हाँ ! ऐसा ही होता है ..
    सुन्दर रचना

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  7. वाह ... बहुत बढ़िया शेर हैं भाई ....

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  8. मैं बुरा था जब तलक ज़िदा रहा,
    अच्छा है कह कर दफ़नाया मुढे
    ...दुनिया की सच्चाई भी ओर दुनियावालों पर करारा व्यंग्य भी।
    ...बेहतरीन ग़ज़ल।

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  9. मैं बुरा था जब तलक ज़िंदा रहा,
    'अच्छा था', ये कहके दफनाया मुझे...

    आज लोगों की फ़ितरत ही ऐसी हो गई है दुनिया छोड़ देने के बाद हर चीज़ अच्छी हो जाती है....बहुत बढ़िया रचना ..धन्यवाद

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  10. निखिल जी,
    बहुत जबरदस्त लिखा है आपने,
    "रौशनी ने कर दिया था बदगुमां,
    शाम तक सूरज ने भरमाया मुझे...

    ऊबती सुबहों का सच मालूम था,
    रात भर ख्वाबों ने बहलाया मुझे...."

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  11. मैं बुरा था जब तलक ज़िंदा रहा,
    'अच्छा था', ये कहके दफनाया मुझे...

    very nice line aabhar

    dinesh duggad

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