शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

इक था भरम के वास्ते...

इतना तबाह कर कि तुझे भी यक़ीं न हो,

इक था भरम के वास्ते, वो दोस्त भी न हो....


महफिल से वो गया तो सभी रौनकें गईं..

ऐसा न हो वो आए, मगर ज़िंदगी न हो


ठिठुरे हैं जो नसीब, उनका अलाव बन...

सूरज ही क्या कि सबके लिए रौशनी न हो


मेरी ही नज़र छीन ले, कोई शख्स क्यूं गिरे...

मौला तेरे किरदार में कोई कमी न हो...


तौबा कभी न चांद पर, हरगिज़ करेंगे इश्क

उतरे कहीं खुमार, तो पग भर ज़मीं न हो...


साए थे, शोर था बहुत, इतना सुन सका...

कंक्रीट के जंगल में कोई आदमी न हो...

 
मंज़िल मिली तो कह गए, बाक़ी है कुछ सफ़र

वो उम्र क्या कि उम्र भर आवारगी न हो


ले जाओ सब ये शोहरतें, ये भीड़, ये चमक

रोने के वक्त हंसने की बेचारगी न हो...

निखिल आनंद गिरि

12 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी ही नज़र छीन ले, कोई शख्स क्यूं गिरे...

    मौला तेरे किरदार में कोई कमी न हो...
    awsome

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  2. क्या कहूँ …………हर शेर लाजवाब्।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल है.
    ठिठुरे हैं जो नसीब, उनका अलाव बन...

    सूरज ही क्या कि सबके लिए रौशनी न हो

    और

    ले जाओ सब ये शोहरतें, ये भीड़, ये चमक

    रोने के वक्त हंसने की बेचारगी न हो...

    आप के शेर संजो लिए हैं.आप की कलम को सलाम .

    जवाब देंहटाएं
  4. तौबा कभी न चांद पर, हरगिज़ करेंगे इश्क

    उतरे कहीं खुमार, तो पग भर ज़मीं न हो...

    well said.....

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  5. चाँद वाला शेर सब से लाजवाब. ठिठुरे नसीब भी बढ़िया.

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  6. मंज़िल मिली तो कह गए, बाक़ी है कुछ सफ़र

    वो उम्र क्या कि उम्र भर आवारगी न हो
    ....................sach hai ...मंजिल मिलने के बाद जो याद रह जाता है , वो सफ़र ही होता है , खालिस मंजिल नहीं ..

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  7. तौबा कभी न चांद पर, हरगिज़ करेंगे इश्क

    उतरे कहीं खुमार, तो पग भर ज़मीं न हो...

    bahut umda sher hai ye nikhil bhai..baki ghazal bhi sahi hai kuch takniki gadbadiyan hain bas...

    जवाब देंहटाएं
  8. महफिल से वो गया तो सभी रौनकें गईं..

    ऐसा न हो वो आए, मगर ज़िंदगी न हो
    क्या बात कही है!!

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  9. Bahut hi umda ghazal...... sach me kafi acha likhte hai aap.... keep up!

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  10. इतना तबाह कर कि तुझे भी यक़ीं न हो,
    इक था भरम के वास्ते, वो दोस्त भी न हो..

    Ye sher sabse jyada touching laga mujhe...

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