वो थोड़ी देर को निकली थी कमरा छोड़कर
कहां मालूम था, चल देगी दुनिया छोड़कर
मैं सहरा हूं, मुकद्दर में लिखा है प्यासा रहना
नदी बहती रही बस एक सहरा छोड़कर
किताबे ज़िंदगी को यूं अधूरा छोड़कर
मेरे कंधे पे यूं आगे का ज़िम्मा छोड़कर
गई वो बेटी को किसके भरोसे छोड़कर
अपने दुधमुंहे बच्चे को रोता छोड़कर
मेरा हंसना भी, रोना है तुम्हारी याद में अब
मैं खाता भी हूं अब आधा निवाला छोड़कर
अधूरी रह गईं कितनी लड़ाई बीच में
तुम्हें जाना नहीं था, मुझको तन्हा छोड़कर