रविवार, 23 जनवरी 2022

तुम्हारे साथ इक लम्हा बहुत है

एक उम्र होती है कि बेसबब भटकने को भी दिन बिताना कहते हैं। वो उम्र कभी-कभी याद बनकर आंखों में उतर आती है। एक दोस्त जैसे चेहरे के साथ घंटो पैदल चलना क्योंकि जेब में पैसे उतने ही होते थे कि जब थककर रुकें तो थोड़ी मूंगफली या एक-एक रसगुल्ला खा सकें। लड़की को अक्सर एक सपना आता था कि दिल्ली की बस में लड़के के साथ एक पूरा दिन सफर करे। मेट्रो भी एक विकल्प है, मगर वहां बहुत सी आंखें हैं जो लगातार घूरती रहती हैं। 

लड़के का सपना था कि कभी कार चलाना सीख सके। लड़का साइकिल चलाना भी ठीक से सीख नहीं पाया। लड़के ने एक दिन सपना देखा कि यूं ही बेसबब अपनी कार लेकर सड़क के किनारे कहीं खड़ा है। अचानक दोस्त जैसा कोई चेहरा लिए वही लड़की बाएं दरवाज़े पर आकर दस्तक देती है। वो दरवाज़ा खोलता है। वो बैठ जाती है। उसे शायद सीट बेल्ट नहीं मिल रही। लड़का उसकी छुअन बचाते हुए सीटबेल्ट ढूंढता है, पूरी शराफत से लगाता है। फिर अपनी सीटबेल्ट दुरुस्त करता है और धीमे से गाड़ी बढ़ जाती है। 

लड़की रास्ते भर खुश है। लड़का जैसे-तैसे स्टीयरिंग संभाले हुआ है। लड़की ने हौले से अपनी हथेली पर दो छोटी टॉफियां रखी हैं। एक लड़के को दिया है। शायद लड़की बताना नहीं चाहती कि लड़के के मुंह से बू आ रही है। लड़की जैसे सपने के भीतर कोई सपना पूरा कर रही है। न कोई बस है, न मेट्रो। सिर्फ दो जोड़ी आंखे हैं पूरी कार में। लड़का रफ्तार में है। लड़की शायद प्यार में है। वो कहती है कि गाड़ी धीमी चलाए। वो कहती है कि गाड़ी बाएं रखे, दाएं रखे। लड़का बस मुस्कुरा देता है। ये उसके सपने में पहली बार हुआ है कि मुस्कुराहट इतनी आसानी से आई है। दिल्ली शहर सपने में इतना बुरा भी नहीं है। 

लड़की ने ऊंघने की शक्ल में अपनी आंखें बंद कर ली हैं। उसके कंधे लड़के की तरफ झुकने लगे हैं। उसके बाल थोड़ा-थोड़ा लड़के की कमीज़ छू रहे हैं। लड़का रेड लाइट पर लड़की को भरपूर देखता है। उसका मन करता है कि थोड़ा और क़रीब जाए। मगर उसका ध्यान स्टीयरिंग पर है। उसे ड्राइविंग का एक उसूल अच्छे से पता है। ड्राइवर के साथ वाली सीट पर जो बैठा है, उसे नींद आने लगे तो जगाकर रखा जाए। 

लड़का बात करने की कोशिश करता है। घर, पढ़ाई, शौक के बारे में पूछता है। फिर लड़की भी लड़के से पूछती है। शौक, रंग, शहर आदि। लड़के को फिरोज़ी रंग पसंद है। दोनों के जीवन में दुख से तार जुड़ते दिखते हैं। दोनों अपना दुख बांटते हुए मुस्कुराते हैं। लड़की अब उतरने को होती है। वो खुश है। उसकी आंखों में शुक्रिया है लड़के के लिए। लड़का उदास है। लेकिन मुस्कुरा रहा है। 

अब वो रोज़ अपनी कार लेकर सड़क पर इंतज़ार करता है। अपना मुंह चेक करता है कि बू तो नहीं आ रही। दो टॉफियां ख़रीदकर खा भी लेता है। कहीं कोई उसके दरवाज़े तक आता नहीं दिखता। सपने रोज़ ख़ुद को नहीं दुहराते। फिरोज़ी रंग के सपने तो कभी भी नहीं। 

निखिल आनंद गिरि

शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

मौन अकेली इक भाषा है, जिसके लुप्त होने का कोई ख़तरा नहीं!


''दुनिया की सबसे छोटी कविता लिखनी हो

तो लिखा जाना चाहिए – पृथ्वी’’

ज्योतिकृष्ण वर्मा जी के कविता संग्रह मीठे पानी की मटकियांमें इस तरह की कई छोटी और प्रभावी कविताएं हैं। कविताओं से अधिक क्षणिकाएं कहना बेहतर रहेगा। पूरे संग्रह में क़रीब 70 कविताएं होंगी, जिनका आकार इसी तरह का है। संपादित, साफ-सुथरी, शांत, गंभीर, छोटी-छोटी कविताएं। कहीं कोई अतिरिक्त शब्द नहीं। कविताएं लिखने का मेरा अनुभव और मिज़ाज इस संग्रह से थोड़ा अलग है, इसीलिए पूरा पढ़ने का आकर्षण बना रहा। 

प्रकृति के कई रंग- जैसे नदी, मौसम, पहाड़, नारियल से लेकर शहर के तमाम रंग इस किताब में मौजूद हैं। कवि के शब्दों में ही कहें तो –

इस किताब को खोलते समय

सिर्फ पन्ने ही नहीं खुलते इसके

खुल जाती हैं

ज्योतिकृष्ण वर्मा जी का कविता संग्रह

नदियां, आकाश, समंदर...

दिख जाते हैं

ऊंची उड़ान भरते पंछी

लहलहाते खेत, पेड़ों पर लौटता वसंत

गुलाब की टहनी पर चटखती कलियां

आंगन में खिली धूप

चूल्हे पर रखी हांडी

स्कूल जाते बच्चे

घर संवारती औरत... (कविता – सिरहाने)

 

इस कविता संग्रह में कई पंक्तियां हैं, जिनमें भरपूर चित्रात्मकता है। ये कवि की सबसे बड़ी ख़ूबी है, जो पूरी कविता में बार-बार उभर कर सामने आती है। जैसे संग्रह की पहली कविता पेड़ से ये पंक्तियां

काश! कोई दिव्य बालक

छिपा देता कुल्हाड़ी कहीं दूर

मनुष्य की पहुंच से।

यहां मनुष्य और दिव्य बालक अलग हो गए हैं। मेरे ज़ेहन में कोई आदिवासी बालक आता है जिसके हाथ में कुल्हाड़ी है और पेड़ों के लिए आदर।

ऐसे ही एक कविता का चित्र देखिए

मेरे शहर में आ जाए

चहचहाती गौरेया

मैं हटा दूंगा

गेट पर टंगा बोर्ड

किराये के लिए मकान खाली है (कविता-रंग)

इस संग्रह को इसीलिए पढ़ना चाहिए कि सीखा जाए कि कम शब्दों में असर कैसे बनाए रखा जाता है। बिना किसी विशेष अलंकार या तामझाम के। आशियाना, कभी-कभार, निवेदन जैसी कविताएं कुल 15-20 शब्दों की हैं, मगर काफी समय तक याद रहने वाली हैं

उसने कोर्ट में अर्ज़ी दी है

अपनी पत्नी से तलाक के लिए

 उसके बारे में

अन्य जानकारी के

कॉलम में

उसने लिखवाया था एक जगह –

होम मेकर (कविता - निवेदन)

किसी भी कविता संग्रह की तरह इसमें मां पर कुछ अच्छी क्षणिकाएं भी हैं। एक भावुक कविता पिता पर भी है जो आम तौर पर कम पढ़ने को मिलती हैं।

बोधि प्रकाशन से आई ये कविता पढ़ने और सहेजने लायक है। आज की कविताओं को जो स्वर है, उनसे अलग। छोटी कविताएं हैं तो युवाओं और मोबाइल पर शायरी फॉरवर्ड करने वालों के लिए भी ये बेहतर विकल्प है जहां कुछ पंक्तियों में ही आपका संदेश आगे जा सकता है। अष्टभुजा शुक्ल के शब्दों में कहें तो- मीठे पानी की मटकियां की ये कविताएं निश्चय ही पाठकों के हलक को तर और तृप्त करेंगी।'

निखिल आनंद गिरि

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