रविवार, 23 जनवरी 2022
तुम्हारे साथ इक लम्हा बहुत है
शुक्रवार, 21 जनवरी 2022
मौन अकेली इक भाषा है, जिसके लुप्त होने का कोई ख़तरा नहीं!
''दुनिया की सबसे छोटी कविता लिखनी हो
तो लिखा जाना चाहिए –
पृथ्वी’’
ज्योतिकृष्ण वर्मा
जी के कविता संग्रह ‘मीठे पानी की मटकियां’ में इस तरह की कई छोटी और प्रभावी कविताएं हैं।
कविताओं से अधिक क्षणिकाएं कहना बेहतर रहेगा। पूरे संग्रह में क़रीब 70 कविताएं
होंगी, जिनका आकार इसी तरह का है। संपादित, साफ-सुथरी, शांत, गंभीर, छोटी-छोटी
कविताएं। कहीं कोई अतिरिक्त शब्द नहीं। कविताएं लिखने का मेरा अनुभव और मिज़ाज इस
संग्रह से थोड़ा अलग है, इसीलिए पूरा पढ़ने का आकर्षण बना रहा।
प्रकृति के कई रंग-
जैसे नदी, मौसम, पहाड़, नारियल से लेकर शहर के तमाम रंग इस किताब में मौजूद हैं।
कवि के शब्दों में ही कहें तो –
‘इस किताब को खोलते समय
सिर्फ पन्ने ही नहीं
खुलते इसके
खुल जाती हैं
ज्योतिकृष्ण वर्मा जी का कविता संग्रह |
नदियां, आकाश,
समंदर...
दिख जाते हैं
ऊंची उड़ान भरते पंछी
लहलहाते खेत, पेड़ों
पर लौटता वसंत
गुलाब की टहनी पर
चटखती कलियां
आंगन में खिली धूप
चूल्हे पर रखी हांडी
स्कूल जाते बच्चे
घर संवारती औरत...’ (कविता – सिरहाने)
इस कविता संग्रह में
कई पंक्तियां हैं, जिनमें भरपूर चित्रात्मकता है। ये कवि की सबसे बड़ी ख़ूबी है,
जो पूरी कविता में बार-बार उभर कर सामने आती है। जैसे संग्रह की पहली कविता ‘पेड़’ से ये पंक्तियां –
‘काश!
कोई दिव्य बालक
छिपा देता कुल्हाड़ी
कहीं दूर
मनुष्य की पहुंच से।‘
यहां मनुष्य और
दिव्य बालक अलग हो गए हैं। मेरे ज़ेहन में कोई आदिवासी बालक आता है जिसके हाथ में
कुल्हाड़ी है और पेड़ों के लिए आदर।
ऐसे ही एक कविता का
चित्र देखिए –
‘मेरे शहर में आ जाए
चहचहाती गौरेया
मैं हटा दूंगा
गेट पर टंगा बोर्ड
‘किराये के लिए मकान खाली है’ (कविता-रंग)
इस संग्रह को इसीलिए
पढ़ना चाहिए कि सीखा जाए कि कम शब्दों में असर कैसे बनाए रखा जाता है। बिना किसी विशेष
अलंकार या तामझाम के। ‘आशियाना’, ‘कभी-कभार’, ‘निवेदन’ जैसी कविताएं कुल 15-20 शब्दों की हैं, मगर काफी समय तक
याद रहने वाली हैं –
‘उसने कोर्ट में अर्ज़ी दी है
अपनी पत्नी से तलाक
के लिए
अन्य जानकारी के
कॉलम में
उसने लिखवाया था एक
जगह –
होम मेकर’ (कविता - ‘निवेदन’)
किसी भी कविता संग्रह
की तरह इसमें मां पर कुछ अच्छी क्षणिकाएं भी हैं। एक भावुक कविता पिता पर भी है जो आम
तौर पर कम पढ़ने को मिलती हैं।
‘बोधि प्रकाशन’ से आई ये कविता पढ़ने और सहेजने लायक है। आज की कविताओं को जो स्वर है, उनसे अलग। छोटी कविताएं हैं तो युवाओं और मोबाइल पर शायरी फॉरवर्ड करने वालों के लिए भी ये बेहतर विकल्प है जहां कुछ पंक्तियों में ही आपका संदेश आगे जा सकता है। अष्टभुजा शुक्ल के शब्दों में कहें तो- ‘मीठे पानी की मटकियां’ की ये कविताएं निश्चय ही पाठकों के हलक को तर और तृप्त करेंगी।'
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