न उनका नाम, ना तो क़द, न ओहदा बोलता है
हुनरमंदों की आखों का इशारा बोलता है
मैं होली खेलकर ज़िंदा तो लौटूंगा ना अम्मा?
हमारे मुल्क का सहमा-सा बच्चा बोलता है
निखिल आनंद गिरि
हुनरमंदों की आखों का इशारा बोलता है
कोई भी मर्ज़ हो, सबकी दवा बस इक मोहब्बत है
कि अंधा देखने लगता है, गूंगा बोलता हैमैं होली खेलकर ज़िंदा तो लौटूंगा ना अम्मा?
हमारे मुल्क का सहमा-सा बच्चा बोलता है
क़िताबे-ज़िंदगी ने ये सबक़ सिखला दिया हमको
कि जब आता नहीं कुछ काम, पैसा बोलता है।निखिल आनंद गिरि
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