वो सभी रिश्ते समाज से,
बेदख़ल कर दिए जाएं,
जिनमें रत्ती भर भी ईमानदारी हो.
उस भीड़ को दफ्न कर दिया जाए
जिसके पास मीठी तालियां हों बस..
तेज़ आंच में झुलसा दी जाएं,
वो तमाम बातें..
जो कही गईं
चांद के नाम पर,
प्यार की मजबूरी में,
नरम हों, ठंडी हों..
वो आंखें नोच ली जाएं,
जिन्हें देखकर लगता हो..
कि ख़ुदा है..
अब भी कहीं..
उस ज़िंदगी से मौत बेहतर,
जिसे ठोकरें तक नसीब नहीं..
एक करवट बदलनेे के लिए..
निखिल आनंद गिरि
बेदख़ल कर दिए जाएं,
जिनमें रत्ती भर भी ईमानदारी हो.
उस भीड़ को दफ्न कर दिया जाए
जिसके पास मीठी तालियां हों बस..
तेज़ आंच में झुलसा दी जाएं,
वो तमाम बातें..
जो कही गईं
चांद के नाम पर,
प्यार की मजबूरी में,
नरम हों, ठंडी हों..
वो आंखें नोच ली जाएं,
जिन्हें देखकर लगता हो..
कि ख़ुदा है..
अब भी कहीं..
उस ज़िंदगी से मौत बेहतर,
जिसे ठोकरें तक नसीब नहीं..
एक करवट बदलनेे के लिए..
निखिल आनंद गिरि
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
जवाब देंहटाएंबढ़िया भाई
जवाब देंहटाएंकरवट बदलने के लिए ठोकरों की जरूरत नहीं काफी है इतना कि संभाले रखा जाए ख्वाबों को चांद को और उस ईमानदारी को, जिसके होने से बचा हुआ है अब भी कहीं न कहीं प्यार का अस्तित्व....संदर्भ के लिए भी कुछ तो चाहिए होगा ना आने वाली पीढ़ियों को....
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