हमारी चुप्पियों के बीच पुल की तरह था मुस्कुराना....
वो धुन याद ही होगी,
कभी ट्रेन की खिड़की से दिख जाती हैं किताबें,
रिश्तों की तरह होती हैं कुछ कविताएं...
जिस पर आराम से तैरता रहा एक रिश्ता...
तुम किसी सूरज की तरह,
उग आती आधी रात में भी...
और मेरी सुबह थोड़ी लंबी हो जाती...
जैसे कुछ कविताएं अधूरी हैं तो सिर्फ इसीलिए,
कि भूल जाता हूं कई बार तुम्हारे नाम का मतलब
वैसे ही कई रातें इसीलिए अधूरी...
कि उगा ही नहीं मेरा सूरज...
वो धुन याद ही होगी,
जो आधी रात में ट्रेन हमें सुनाकर गुज़र जाती..
और तुम खिड़कियां बंद कर लेतीं...
हम जागते देर तक नींद में...
समंदर की लहरों ने नहीं देखी समंदर की गहराई,
समंदर की लहरों ने नहीं देखी समंदर की गहराई,
मगर एक रिश्ता तो है...
सूरज की किरणों ने सूरज के सीने में झांककर भी नहीं देखा...
मगर तपिश है
गुनगुनी धूप है धरती पर...
गुनगुनी धूप है धरती पर...
कभी ट्रेन की खिड़की से दिख जाती हैं किताबें,
जिन्हें पढ़ नहीं पाते...
मगर याद रहती हैं तस्वीरें...
और हम सोचते रहते हैं यात्रा भर,
किताबों की लिखावट, मुलायम पन्ने वगैरह वगैरह....
रिश्तों की तरह होती हैं कुछ कविताएं...
मजबूरन ख़त्म करनी पड़ती है...
कविताओं की तरह होते हैं कुछ रिश्ते
बार-बार पढकर रुलाई आती है...
निखिल आनंद गिरि
बार-बार पढकर रुलाई आती है...
निखिल आनंद गिरि
गहन खूबसूरत एहसास ....कुछ अनकहा सा है इस कविता में जो एक टीस दे रहा है ....कुछ ऐसा जिसे थामा हुआ है मन ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ...
शुभकामनायें ...
कुछ रिश्ते...सच....कविताओं की तरह होते हैं...उनसे रुलाई का ही रिश्ता होता है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता.
बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने....
जवाब देंहटाएंits nice but wanna say ur prose is much enchanting than urs poetry. :)
जवाब देंहटाएंits nice but wanna say ur prose is much enchanting than urs poetry. :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut sunder ahsaas.....
जवाब देंहटाएंwah dada kya khub....
जवाब देंहटाएंwah dada kya khub....
जवाब देंहटाएंwah dada kya khub....
जवाब देंहटाएंबहुत जी अच्छी लगी। एक एक एहसास का नमूना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी लगी। एक एक एहसास का चित्रण।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
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