तुम सिखा दो ........
दुःख हो या कि सुख सदा उत्सव मनाना, तुम सिखा दो॥
दूसरों के मर्म पर सब कुछ लुटाना, तुम सिखा दो॥
मुस्कुराना तुम सिखा दो॥
जानता हूँ, सैकड़ों बादल रखे हैं, हँसती आँखों में छिपाकर,
तृप्त हो लेती हो अपना मन, अकेले में भिगाकर
और कह देती हो मुझसे- 'सुख इसी अवसाद में है'!!
आह!! कैसा सुख कि अपना घर जलाकर,
नीड़ औरों का बसा खुद को मिटाना, तुम सिखा दो॥
मुस्कुराना तुम सिखा दो॥
मैं कहाँ रोया कि जब कोई बात गड़ती है हृदय में
कब बता पाया कि तुम ही मार्गदर्शक हर विजय में
और तुम... आकाश के निर्लिप्त पंछी की तरह ही
मौन के विस्तार को भी, बाँधती हो एक लय में
आँसुओं की लय पिरोकर, गुनगुनाना, तुम सिखा दो॥
मुस्कुराना तुम सिखा दो॥
रात का अंतिम प्रहर है, तुम निरंतर दिख रही हो
मैं तो केवल शब्द गढ़ता, तुम ही मुझको लिख रही हो
चाहता हूँ, प्रेम-रूपी इस शिला के मिटा डालूँ लेख सारे,
मिलन कैसा?? हम किसी सूखी नदी के दो किनारे!!
तुम न इस सूखी नदी पर रेत का सेतु बनाना
सब भुला दो, है उचित सब कुछ भुलाना
मुस्कुराना तुम सिखा दो...
निखिल आनंद गिरी
हिंद-युग्म पर पुरस्कृत कविता (देखें www.merekavimitra.blogspot.com)
गुरुवार, 5 जुलाई 2007
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ये पोस्ट कुछ ख़ास है
भोजपुरी सिनेमा के चौथे युग की शुरुआत है पहली साइंस फिक्शन फिल्म "मद्धिम"
हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि - कथाकार विमल चंद्र पांडेय की भोजपुरी फिल्म "मद्धिम" शानदार थ्रिलर है। वरिष्ठ पत्रकार अविजित घोष की &...
-
कौ न कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए....बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं....इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं....मन करता है रोज़ ...
-
छ ठ के मौके पर बिहार के समस्तीपुर से दिल्ली लौटते वक्त इस बार जयपुर वाली ट्रेन में रिज़र्वेशन मिली जो दिल्ली होकर गुज़रती है। मालूम पड़...
-
हिंदी सिनेमा में आखिरी बार आपने कटा हुआ सिर हाथ में लेकर डराने वाला विलेन कब देखा था। मेरा जवाब है "कभी नहीं"। ये 2024 है, जहां दे...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
इस पोस्ट पर कुछ कहिए प्लीज़