शनिवार, 17 अगस्त 2024

बेस्टसेलर होने के पीछे की अंधेरी दास्तान है "टिप टिप बरसा पानी"


आजकल फिल्मी गीतों या नामों पर हिंदी साहित्य में किताबों के नाम रखे जाने का ट्रेंड है। 

हाल ही में मैंने अपने साथी तोमोजित भट्टाचार्य की एक अंग्रेज़ी पुस्तक पढ़ी "Destination Delhi"। उसमें भी एक अनोखा प्रयोग ये था कि किताब के हर अध्याय का नाम हिंदी फिल्मी गानों का टाइटल था - जैसे "एक अकेला इस शहर में", "हम आए हैं यूपी बिहार लूटने", "वो शाम कुछ अजीब थी" आदि।

वरिष्ठ कवि व कथाकार अभिज्ञात के नए हिंदी उपन्यास का शीर्षक 'टिप टिप बरसा पानी' भी ' '90 के दशक की मशहूर फिल्म "मोहरा" से उठाया गया है, जो रवीना टंडन पर बेहद लुभावने अंदाज़ में फिल्माया गया था। सिर्फ शीर्षक ही नहीं, पूरा उपन्यास ही "मोहरा" की तरह नए-नए उतार चढ़ाव से भरा पड़ा है। 

इस उपन्यास का शीर्षक "मोहरा" भी रख देते तो शायद ज़्यादा सार्थक होता क्योंकि पूरी कहानी में हर पात्र किसी न किसी की बिसात पर बिछा मोहरा ही है। उपन्यास के लेखक की उम्र अगर न बताई जाए तो लगेगा कि नई वाली हिंदी के किसी अभी-अभी उगे लेखक ने बेस्टसेलर होने की जुगत में इस उपन्यास को लिखा है। सिर्फ भाषा ही नहीं, कच्ची उम्र के कुछ दृश्य भी ऐसी ताज़गी से रचे गए हैं कि आप एक साथ अनुभवी साहित्य में लुगदी का आनंद ले सकते हैं।

अभिज्ञात हिंदी साहित्य में लंबा अनुभव रखते हैं। इस कहानी में उन्होंने बड़ी चतुराई से अंग्रेज़ी साहित्य के भीतर का काला संसार रचा है और हिंदी वालों को क्षणिक क्लीन चिट दे दी है। मुख्य पात्र अंग्रेज़ी का एक बेस्टसेलर लेखक है, जिसका मुख्य काम शोहरत के लालच में किसी भी तरह से संपर्क साधना और अय्याशी के लिए इस्तेमाल करना है। अपने उपन्यास के प्लॉट के लिए वो अपने संपर्क में आए कुछ युवाओं को ऐसे जाल में फंसाता है कि आप अगर अपनी भाषा के लेखक हैं, तो आप अपनी मर्यादा का थर्मोमीटर ज़रूर चेक करने लगेंगे कि आपने बुलंदियों की सीढियां चढ़ने के लिए जाने अनजाने किसी का इस्तेमाल तो नहीं किया है।

शुरू में आपको लगता है कि आप ये साधारण भाषा वाली अति साधारण कहानी पूरी क्यूं पढ़ेंगे जबकि आपके पास अपने बाल कटाने, गाड़ी धुलवाने, बच्चों को खेलने-खिलाने जैसे कई अधूरे काम पूरे करने हैं, फिर अचानक एक मोड़ तक पढ़ चुकने के बाद ये कहानी आपको नहीं छोड़ती। हर पन्ने पर कहानी मीलों का सफ़र तय करती है। कोलकाता से अमरीका तक। और इस बीच में क्या-क्या नहीं होता।

आसान दिखती कहानी के पात्र बहुत कसाव के साथ एक दूसरे के साथ बंधे हुए हैं जो समय समय पर ज़रूरत के हिसाब से उग आते हैं। ऐसी कहानियों पर कोई फिल्म या आज के ज़माने में कोई वेबसीरीज बने तो ताज्जुब नहीं होगा। चूंकि उपन्यासकार अभिज्ञत अभिनेता भी हैं तो वेबसीरीज के नायक "अनिमेष" की भूमिका भी ख़ुद उन्हें ही निभानी चाहिए क्योंकि एक साहित्यिक यात्रा में जितने शेड्स लेखक की निजी ज़िंदगी में होते हैं, अभिज्ञात ने वो सब जिए ही होंगे। 

तो अगर आप नई वाली हिंदी के नाम पर भाषा की खिचड़ी के साथ कहानी का सूखा पापड़ नहीं खाना चाहते तो अभिज्ञात को पढ़िए। वो पुरानी वाली हिंदी के आदमी हैं, मगर उनकी रची प्रेम कहानी पढ़कर नए वाले लौंडे बहुत दिनों तक पानी भरेंगे।

(युगवार्ता में प्रकाशित)
निखिल आनंद गिरि

शुक्रवार, 9 अगस्त 2024

चालीस की सड़क

दुनिया अब बाज़ार में बदल गई है
दोस्त अब आत्महत्याओं में बदल गए हैं
मंच अब मंडियों में बदल गए हैं
कविताएं अब पंक्तियों में बदल गई हैं

तुम्हारी याद एक बच्चे की नींद में बदल गई है
मेरा रोना अब लोरियों में बदल रहा है।
इस वक्त जो मैं खड़ा हूं
चालीस की तरफ जाती एक सड़क पर
जिसका नाम जीवन है
और जो एक पीड़ा में बदल गया है - 

मैं बदलना चाहता था एक प्रेमी में
एक अकेले कुंठाग्रस्त कवि में बदलता जा रहा हूं

दुनिया बदल जाती केले के छिलके में 
तो कितना अच्छा होता
फिसल जाते हम सब।

दुनिया एक प्लेस्कूल में बदल गई है
जहां मेरे दो बच्चे पढ़ते हैं
चहचहाते हैं, नई भाषाएं सीखते हैं
दुनिया का नक्शा काटते हैं।
और मैं उनके लौटने का इंतज़ार 
करता हूं सड़क के उस पार

मैं एक भिक्षुक में बदलना चाहता था
जिसके कटोरे में मीठी स्मृतियां होतीं 
मगर मैं एक चौकीदार में 
बदलता जा रहा हूं
सावधान की मुद्रा में खड़े
उम्र के बुझते हुए लैंप पोस्ट के नीचे

निखिल आनंद गिरि

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