शनिवार, 23 जून 2012

कल सपने में आई थी पुलिस...

इधर कुछ दिनों से..
डरावनी हो गईं है मेरी सुबहें...

कल सपने में अचानक बज उठा सायरन,
और मैंने देखा सुबह मेरे घर पुलिस आई थी
मुझे ठीक तरह से याद नहीं
कितनी ज़मानत देकर छूटा था मैं सपने में...

वो बरसों पुराना लिफाफा था कोई,
जिन्हें कभी पहुंचना नहीं था मेरे पास
एक डाकिया आया था कल रात सपने में
सपने में ही आते हैं ख़त आजकल...

कल सपने मे मुझे डांटने का मन हुआ
बूढ़े होते पिता को...
और मैं सुबह से सोचता रहा
मुझे मौत कब आएगी..

अचानक सपने में कोई मर रहा था प्यास से
और मैंने उसे दिखाए समंदर
जिनका रंग ख़ून की तरह लाल था...
मगर फिर भी वो प्यास बुझाकर खुश था...

हां, एक सपना भूख की शक्ल का भी था
जब तुमने इत्मीनान से पकाई थी खिचड़ी
और आधा ही खाकर आ गई मुझे नींद...
मैं भूख से इतना खुश पहले कभी नहीं हुआ,

मैं सच कहता हूं, एकदम सच...
मुझे रात भर नींद नहीं आती आजकल
मगर सपने आते हैं बेहिसाब
सपनों में रोज़ आती है पुलिस
रोज़ आते हैं पिता
और रोज़ आती है प्यास
जिसका रंग लाल है...

वो दफ्तर जहां मेरे पिता जाते हैं हर साल
ये साबित करने कि वो ज़िंदा हैं..
सुना किसी अफसर से लड़ गया था कोई आम आदमी
तब से हर किसी की तलाशी लेता है बेचारा गार्ड

यहां कवियों की भी तलाशी ली जाती है
और इसी बात पर मन करता है
कि अगर नहीं छूटती मुल्क से गुलामी
तो क्यों ने छोड़ दिया जाए मुल्क ही
और उड़ कर भाग जाएं सिंगापुर...
जब जेब में हों इत्ते भर पैसे...
कि भागकर लौटा न जा सके...

निखिल आनंद गिरि

8 टिप्‍पणियां:

  1. कल 24/06/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह ... बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने

    जवाब देंहटाएं
  3. निखिल,
    सचमुच बढ़िया लिखते हो,
    पर शादी के बाद सिर्फ सपनों में दीखते हो,
    कल मेरे सपने में खुद सिंगापुर चला आया था,
    ढूंढ रहा था तुम्हें मेरे ही घर के भीतर
    जब तक मैं तुम्हें छुपाऊँ
    वह तुम्हें ले उड़ा,
    और मेरी आँख अचानक खुल गई.

    कल सपने में आया था एक थियेटर,
    जिसमें हम देख रहे थे कोई फिल्म,
    अंदर से हीरो हीरोइन निकल कर थियेटर में आ गए
    हम दोनों को देखने लगे गौर से
    कि क्या सचमुच ये तुम दोनों हो कि आज साथ साथ आए हो,
    जन्मों के बाद!
    और हीरो हीरोइन पर्दे पर जा का=र नाचने गाने लगे
    खुशी में
    और मेरी आँख खुल गई.
    काश मेरे सपने भी तुम्हारे सपनों की तरह स्थिर रह सकते
    सच्चाई बार बार एक मुक्का मेरी आँखों के बाहर मार कर
    मेरी आँखें खोल देती है.

    सच,
    कब आएँगे मेरी आँखों में
    ऐसे विश्वसनीय सपने!
    और ऐसे विश्वसनीय सच!
    कि हम सड़कों पर साथ साथ घूम रहे हैं!
    अगली मेल में बताना,
    या अगली कविता में,
    या अगले सपने में.

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  4. प्रेमचंद जी,
    प्यार भरे ताने और कमेंट के लिए शुक्रिया.....समय कभी एक सा नहीं रहता..फिर बदलेगा...इसी उम्मीद के साथ....

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