ईमानदार प्रेमियों की पहचान यही है कि वे सिर्फ प्रेमिका(ओं) के दिल में नहीं, उनके मां-बाप की गालियों में भी रहते हैं। ईमानदार प्रेमिकाओं की पहचान ये है कि वो इमरजेंसी के मौक़े पर अपने प्रेमियों को पहचानने से साफ इंकार कर दे। इससे प्रेम की उम्र तो बढ़ती ही है, ग़लतियों की गुंजाइश भी बनी रहती है। और फिर कोई रिश्ता बिना ग़लतियां किए लंबा खिंचे, मुमकिन ही नहीं।
ख़ैर, उसकी प्रेमिका न तो मां-बाप के साथ रहने की गलती कर रही थी और न ही उसके मां-बाप को ये पता था कि बेटी प्रेम जैसा वाहियात काम भी पढ़ने के अलावा सोच सकती है। मगर, ऐसा हुआ और दिन में कॉलेज की क्लासेज़ के बजाय वो दिल्ली की रातें ज़्यादा समझने लगे। कभी वो सॉफ्टी की डिमांड करती तो कभी चांद की। हर बार उसे कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देना पड़ता क्योंकि दिल्ली की रातों में सॉफ्टी कम ही हुआ करती थी और चांद पर एक रात में पहुंचना ज़रा मुश्किल था।
इस देश में प्रेम अब तक असामाजिक इसीलिए माना जाता रहा है क्योंकि केंद्रीय राजनीति में इसने अपनी अहमियत साबित नहीं की है। इसकी ठोस वजह ये है कि अब तक देश की राजनीति परिवारों के डाइनिंग टेबल से बाहर निकल ही नहीं पाई है। जिस दिन राजनीति से परिवार कम हुए तो निश्चित तौर पर प्रेम कहानियों के लिए रास्ते बनेंगे और फिर बिना गालियों-जूतों के संसद सुकून से चला करेगी। अगर देश के सभी युवा अपनी असफल प्रेम कहानियों को रद्दी के भाव भी बेचें तो कम से कम इतनी कमाई तो ही सकती है कि दो-चार गांवों का राशन इकट्ठा हो सके।
उसकी एक प्रेमिका सिर्फ इस बात से नाराज़ हो गई क्योंकि वो रोटियों में घी लगाकर नहीं खाता था। दरअसल, उसे रोटियों की गोल शक्ल देखकर सिर्फ प्रेमिका(एं) ही याद आतीं और वो घी लगाना भूल जाता। हालांकि, उसकी याद्दाश्त इतनी अच्छी थी कि उसे दूधवाले और पेपरवाले का महीनों पुराना हिसाब मुंह ज़बानी याद रहता।
एक दिन अखबार में ख़बर छपी कि दुनिया तबाह होने जा रही है। उन्हें भी लगा कि दुनिया तबाह हो जाएगी, इसीलिए तबाही के पहले दुनिया की सभी खुशियां आपस में बांट ली जाएं। उन्होंने एक-दूसरे से ख़ूब सारी बातें की, ख़ूब सारी फिल्में देखीं, ख़ूब सारा प्यार किया और ख़ूब सारे वादे किए। जब इन सबसे बोर होने के बाद भी प्रेमिका को लगा कि दुनिया अब भी ख़त्म नहीं हुई तो उसने प्रेमी को जी भरकर गालियां दीं। उसने कहा कि अखबार की ख़बर उसी की साज़िश थी और दुनिया कभी ख़त्म नहीं होने वाली। बहरहाल, ये रिश्ता यहीं पर ख़त्म हो गया। प्रेमिका ने अपने लिए दूसरी दुनिया ढूंढ ली। प्रेमी ने जो किया, वो जानना किसी अखबार पढ़ने से भी कम ज़रूरी है।
निखिल आनंद गिरि
ख़ैर, उसकी प्रेमिका न तो मां-बाप के साथ रहने की गलती कर रही थी और न ही उसके मां-बाप को ये पता था कि बेटी प्रेम जैसा वाहियात काम भी पढ़ने के अलावा सोच सकती है। मगर, ऐसा हुआ और दिन में कॉलेज की क्लासेज़ के बजाय वो दिल्ली की रातें ज़्यादा समझने लगे। कभी वो सॉफ्टी की डिमांड करती तो कभी चांद की। हर बार उसे कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देना पड़ता क्योंकि दिल्ली की रातों में सॉफ्टी कम ही हुआ करती थी और चांद पर एक रात में पहुंचना ज़रा मुश्किल था।
इस देश में प्रेम अब तक असामाजिक इसीलिए माना जाता रहा है क्योंकि केंद्रीय राजनीति में इसने अपनी अहमियत साबित नहीं की है। इसकी ठोस वजह ये है कि अब तक देश की राजनीति परिवारों के डाइनिंग टेबल से बाहर निकल ही नहीं पाई है। जिस दिन राजनीति से परिवार कम हुए तो निश्चित तौर पर प्रेम कहानियों के लिए रास्ते बनेंगे और फिर बिना गालियों-जूतों के संसद सुकून से चला करेगी। अगर देश के सभी युवा अपनी असफल प्रेम कहानियों को रद्दी के भाव भी बेचें तो कम से कम इतनी कमाई तो ही सकती है कि दो-चार गांवों का राशन इकट्ठा हो सके।
उसकी एक प्रेमिका सिर्फ इस बात से नाराज़ हो गई क्योंकि वो रोटियों में घी लगाकर नहीं खाता था। दरअसल, उसे रोटियों की गोल शक्ल देखकर सिर्फ प्रेमिका(एं) ही याद आतीं और वो घी लगाना भूल जाता। हालांकि, उसकी याद्दाश्त इतनी अच्छी थी कि उसे दूधवाले और पेपरवाले का महीनों पुराना हिसाब मुंह ज़बानी याद रहता।
एक दिन अखबार में ख़बर छपी कि दुनिया तबाह होने जा रही है। उन्हें भी लगा कि दुनिया तबाह हो जाएगी, इसीलिए तबाही के पहले दुनिया की सभी खुशियां आपस में बांट ली जाएं। उन्होंने एक-दूसरे से ख़ूब सारी बातें की, ख़ूब सारी फिल्में देखीं, ख़ूब सारा प्यार किया और ख़ूब सारे वादे किए। जब इन सबसे बोर होने के बाद भी प्रेमिका को लगा कि दुनिया अब भी ख़त्म नहीं हुई तो उसने प्रेमी को जी भरकर गालियां दीं। उसने कहा कि अखबार की ख़बर उसी की साज़िश थी और दुनिया कभी ख़त्म नहीं होने वाली। बहरहाल, ये रिश्ता यहीं पर ख़त्म हो गया। प्रेमिका ने अपने लिए दूसरी दुनिया ढूंढ ली। प्रेमी ने जो किया, वो जानना किसी अखबार पढ़ने से भी कम ज़रूरी है।
निखिल आनंद गिरि
असफल प्रेम की कहानिया अक्सर सफल हो जाया करती हैं
जवाब देंहटाएंऔर रही रद्दी की बात
तो अब प्रेम भी रिसाइकल होकर बार बार होने ही लगा है
रद्दी खुद ब खुद बिकती जा रही है
कहाँ किसी के पास वक़्त वादों को सवारने का यादों के सँभालने का
प्रेम का सफल होना या असफल होने का विश्लेषण करने का समय कहाँ है ..... दिल production हाउस की बेल्ट की तरह हो गया जो कभी खाली नहीं रहती
जवाब देंहटाएंआज यही हो रहा है।
जवाब देंहटाएंaap achha likhte hain. par vishay badlne ka bhi pryas kareiye na....kuchh aur bato par bhi likhe.
जवाब देंहटाएंगज़ब लिखते हैं आप।
जवाब देंहटाएंरश्मि,
जवाब देंहटाएंज़रूर कोशिश करूंगा और विषयों पर लिखने की...सुझाव अच्छा है....बताएं किस पर लिखा जाए...अपना कुछ अनुभव हुआ तो शेयर ज़रूर करूंगा...
फिर क्या हुआ... ? क्या प्रेम रीसाईकल हुआ... ?
जवाब देंहटाएंनिखिल सर अब तो दिल्ली की प्रमिकाएं सॉफ्टी नहीं बल्कि वोडका और किंगफिशर की मांग रखती हैं..रातें तेजी से बदल रही हैं सुबह के 4 बज गए लेकिन पार्टी चल रही है..वैसे भी मध्यम वर्ग के लिए प्यार हेमेशा से केवल शब्द भर रहा है..युवा जिसको हमेशा कसौटियों पर तौलते हैं और हमारी पिछली पीढ़ी उनके से सभी दावों को खारिज कर केवल फैसला सुनाने में यकीन रखता है..वो दिखाते हैं कि दुनिया में वे ही मर्द बचे हैं...लेकिन वे एसे मर्द हैं जिन्होंने चोरी छिपे शायद कभी प्यार किया भी था लेकिन वे आज तक नाकाम मर्द बनकर सफलता का राद अलाप रहे हैं
जवाब देंहटाएंआपकी की कलम की स्याही उस प्रेमी के दिल की गहराई दर्शाती है..... वाकई आपकी लेखनी का लाजवाब है.......
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर पहुँच गया.. नाउम्मीद नहीं हुआ.. यूंकि प्यार अभी भी रद्दी के भाव बिकता है, हमने तो इसे नदी में बहा दिया था..!!!!
जवाब देंहटाएंthanx manoj k...aate rahiye..
जवाब देंहटाएंवाह ...
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