आठ महीने के बाद पहली बार नौकरी लगी थी। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। बीएड का प्लान, सिविल सर्विस की तैयारी और पता नहीं किन-किन नौकरियों के सपने इन आठ महीनों में उसकी आंखों के सामने से गुज़र गए थे। जब नौ हज़ार रुपये की नौकरी लगी तो उसने घूम-घूम कर मिठाईयां बांटी और शाही ऐलान किया कि सबसे पहले नई चड्डियां ख़रीदेगा..
रात को सोते वक्त मोबाइल सिर के पास रखा होना परंपरा की तरह ज़रूरी था। अचानक फोन की घंटी बजती तो वो कितनी भी गहरी नींद में उठकर बातें करने लगते। हालांकि गहरी नींद बस एक आदर्श वाक्य की तरह थी जिसे पीढी दर पीढ़ी आगे सरका दिया जाता है मगर समझना या अमल करना कोई नहीं चाहता।
कुछ लड़कियों के बारे में पूरे शहर का एक ही ख़याल होता था। वो कब क्या हो जाएं, कोई नहीं जानता। उनसे बात करने से पहले ये देखना पड़ता है कि वो शादीशुदा हैं, किसी परिचित की प्रेमिका हैं या फिर अनजान चेहरा जहां संभावना बची हुई है। दोस्त की प्रेमिका से देर तक बात तो की जा सकती है, मगर कुंठाएं शालीनता के लिबास में हमेशा ओढ़े रहनी चाहिए।
ये मेरी निजी और शायद इकलौती राय होगी कि दोस्त को समझना लड़कियों को समझने से ज़्यादा मुश्किल है। वो देर तक लड़ते रहे कि पांच रुपये की झालमुड़ी के पैसे कौन देगा। एक का कहना था कि वो कमाता है इसीलिए उसे ही देना चाहिए। दूसरा कह रह था कि उसने झालमुड़ी ऑफर की है तो पैसे देने का हक़ उसका है। आधे घंटे की लड़ाई के बाद झालमुड़ी वाले ने कहा जाने दीजिए, मत दीजिए पैसे।
कुछ लोगों के बारे में राय बनाना बेहद मुश्किल होता है। वो इतने शातिर होते हैं कि आपके लाख चाहने पर भी शातिर नहीं लगते। उसके दोस्त उसे इतना प्यार करते थे कि जब उसका जन्मदिन होता तो आधी रात को इतनी तेज़ आवाज़ में गाने बजा देते कि मोहल्ले भर में लोग उन्हें गालियां बकते। उसकी प्रेमिका उससे इतना प्यार करती कि उसके मां-बाप उसे ज़िंदगी भर मरा हुआ मान बैठने पर आमादा हो जाते। हालांकि, वो अपनी प्रेमिका से इतना प्यार करता था कि इतना प्यार मां-बाप से किया होता तो उनकी उम्र पांच साल शर्तिया बढ जाती।
निखिल आनंद गिरि
रात को सोते वक्त मोबाइल सिर के पास रखा होना परंपरा की तरह ज़रूरी था। अचानक फोन की घंटी बजती तो वो कितनी भी गहरी नींद में उठकर बातें करने लगते। हालांकि गहरी नींद बस एक आदर्श वाक्य की तरह थी जिसे पीढी दर पीढ़ी आगे सरका दिया जाता है मगर समझना या अमल करना कोई नहीं चाहता।
कुछ लड़कियों के बारे में पूरे शहर का एक ही ख़याल होता था। वो कब क्या हो जाएं, कोई नहीं जानता। उनसे बात करने से पहले ये देखना पड़ता है कि वो शादीशुदा हैं, किसी परिचित की प्रेमिका हैं या फिर अनजान चेहरा जहां संभावना बची हुई है। दोस्त की प्रेमिका से देर तक बात तो की जा सकती है, मगर कुंठाएं शालीनता के लिबास में हमेशा ओढ़े रहनी चाहिए।
ये मेरी निजी और शायद इकलौती राय होगी कि दोस्त को समझना लड़कियों को समझने से ज़्यादा मुश्किल है। वो देर तक लड़ते रहे कि पांच रुपये की झालमुड़ी के पैसे कौन देगा। एक का कहना था कि वो कमाता है इसीलिए उसे ही देना चाहिए। दूसरा कह रह था कि उसने झालमुड़ी ऑफर की है तो पैसे देने का हक़ उसका है। आधे घंटे की लड़ाई के बाद झालमुड़ी वाले ने कहा जाने दीजिए, मत दीजिए पैसे।
कुछ लोगों के बारे में राय बनाना बेहद मुश्किल होता है। वो इतने शातिर होते हैं कि आपके लाख चाहने पर भी शातिर नहीं लगते। उसके दोस्त उसे इतना प्यार करते थे कि जब उसका जन्मदिन होता तो आधी रात को इतनी तेज़ आवाज़ में गाने बजा देते कि मोहल्ले भर में लोग उन्हें गालियां बकते। उसकी प्रेमिका उससे इतना प्यार करती कि उसके मां-बाप उसे ज़िंदगी भर मरा हुआ मान बैठने पर आमादा हो जाते। हालांकि, वो अपनी प्रेमिका से इतना प्यार करता था कि इतना प्यार मां-बाप से किया होता तो उनकी उम्र पांच साल शर्तिया बढ जाती।
निखिल आनंद गिरि