शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

माई गे माई..एफडीआई..

आई रे आई, एफडीआई...
माई गे माई, एफडीआई..
दादा रे दादा, एफडीआई..

हथिया पे आई..
साइकिल पे आई..
लल्लू के, कल्लू के
दुर्दिन मिटाई..
आई रे आई, एफडीआई..

बटुआ में आई,
जै काली माई
व्हाइट हाउस वाली
काली कमाई..
आई रे आई, एफडीआई...

अमरीकी राशन
जियो सुशासन
खेती लंगोटी में
बिक्री में टाई..
आई रे आईएफडीआई...

खुदरा किराना..
डॉलर खजाना..
चड्डी में, टट्टी में
सोना हगाई..
आई रे आई, एफडीआई...

उठा के कॉलर,
घूमेगा डॉलर..
खेलेगा रुपिया,
छुप्पम छुपाई
आई रे आई, एफडीआई...
 
माया रे माया
नाटक रचाया
दद्दा मुलायम
चाभो मलाई..
आई रे आई, एफडीआई..
समाजवाद माने एफडीआई...
दलितवाद याने एफडीआई...

निखिल आनंद गिरि

7 टिप्‍पणियां:

  1. आज नागार्जुन होते तो ऐसी ही कविता लिखते जैसे
    "ओं भैरो, भैरो, भैरो, ओं बजरंगबली
    ओं बंदूक का टोटा, पिस्तौल की नली
    ओं डालर, ओं रूबल, ओं पाउंड
    ओं साउंड, ओं साउंड, ओं साउंड
    ओम् ओम् ओम्
    ओम् धरती, धरती, धरती, व्योम् व्योम व्योम्
    ओं अष्टधातुओं की ईंटों के भट्ठे
    ओं महामहिम, महामहो, उल्लू के पट्ठे
    ओं दुर्गा दुर्गा दुर्गा तारा तारा तारा
    ओं इसी पेट के अंदर समा जाए सर्वहारा
    हरि: ओं तत्सत् हरि: ओं तत्सत्"

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  2. बधाई, आपकी लेखनी दमदार है..

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  3. आपका यह पोस्ट अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।

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