कोई आग्रह नहीं फिर भी
मैं रात भर उसके करवट बदलने का इंतज़ार करता हूं
वो सरसों के तकिये पर आसमान से बतियाती है
एक निर्दोष हंसी हंसती है मुझ पर
कि उसे दे पाया नरक-सी ही दुनिया
अपनी पवित्र अंगुलियों से कोई रेखाचित्र बनाती है हवाओं में
शायद काट रही है दुनिया का घिसा-पिटा नक्शा
रच रही है अपनी अलग दुनिया
जिसे पढ़ने के लिए बरसों-बरस करनी होगी साधना
बरसों-बरस डूबना होगा प्रेम में
यह मेरा ख़ून है जो शक्ल लेता है
दुनिया को निर्दोष, अबोध शक्ल देता
कोई अलौकिक घटना नहीं यह
होता आया सदियों से
फिर भी लगता है
अभी-अभी जीवन को महसूस किया है
अपनी हथेली पर
अगर हम आज से पहले जी रहे थे तो यह सरासर झूठ था
जीवन जितना मुलायम सुना
अभी-अभी देखा है एकदम पहली बार
दो बजकर सैंतीस मिनट पर
देवता करते हैं रखवाली रातों की
जो सो रहे होते हैं
मीठे सपने घोलते उनकी नींदो में
जगती आंखों में उम्मीद भरते शायद
और अंधेरी रातों में जो भूल चुके होते हैं रोशनी का चेहरा
हमारी-तुम्हारी जैसी आंखों में नया उजाला भरते
यह उजाला सांस लेता है
जैसे सृष्टि ऊर्जा भरती हो धमनियों में
इस उजाले की आंखें हैं
जैसे रातों के देवता गूंथ गये हों मणि अपनी
इस उजाले को एक नाम दूंगा दीये-सा
टिमटिमाता रहे हर अंधेरे कोने में
अथाह संभावनाएं लिए
4) मैं नही
तुम नही
जीवन नही
जो था
जीवन का भ्रम था
दुनिया नही
दुनिया का भ्रम था
प्रेम नही
प्रेम का भ्रम था
मैं शर्तिया कहता हू
ये घनी अंधेरी रात नही
रात का भ्रम है
ये दरअसल उजाले की शुरुआत है
जो मेरी आँखों में साफ पढ़ा जा सकता है
हथेलियों पर महसूस किया जा सकता है
सब कुछ ख़त्म हो चुका है
या हो रहा है
यह भी एक भ्रम था
इस नन्हे समय के टुकड़े के साथ
जिया जा सकता है पूरा जीवन
निखिल आनंद गिरि