नदी जब सूख जाती है अचानक
उदास हो जाते हैं कई मौसम..
मछलियां भूल जाती है इतराना..
नावें भूल जाती हैं लड़कपन..
पनिहारिनें भूल जाती हैं ठिठोली..
मिट्टी में दब जाते हैं मीठे गीत...
गगरी भूल जाती है भरने का स्वाद..
सूरज परछाईं भूलता है अपनी,
पंछी भूल जाते हैं विस्तार अपना..
किनारे भुला दिए जाते हैं अचानक...
लाचार बांध पर दूर तक चीखता है मौन..
कुछ भी लौटता नहीं दिखता..
नदी के जाने के बाद..
कहीं कोई ख़बर नहीं बनती,
नदी के सूख जाने के बाद..
निखिल आनंद गिरि
उदास हो जाते हैं कई मौसम..
मछलियां भूल जाती है इतराना..
नावें भूल जाती हैं लड़कपन..
पनिहारिनें भूल जाती हैं ठिठोली..
मिट्टी में दब जाते हैं मीठे गीत...
गगरी भूल जाती है भरने का स्वाद..
सूरज परछाईं भूलता है अपनी,
पंछी भूल जाते हैं विस्तार अपना..
किनारे भुला दिए जाते हैं अचानक...
लाचार बांध पर दूर तक चीखता है मौन..
कुछ भी लौटता नहीं दिखता..
नदी के जाने के बाद..
कहीं कोई ख़बर नहीं बनती,
नदी के सूख जाने के बाद..
निखिल आनंद गिरि
ह्म्म्म .. सोचने पर विवश करती बातें!
जवाब देंहटाएंनदी का खिलखिलाना जिंदगी बनाये रखता है प्रकृति की !
जवाब देंहटाएंउदास मगर रचना अच्छी लगी !
:( :(
जवाब देंहटाएंउदासी ने आज मुझे भी घेरा है..
:( :(
जवाब देंहटाएंलेकिन
जवाब देंहटाएंकविता ज़रूर बनती है
नदी के सूख जाने के बाद
जो नदी सी ही होती है आर्द्र
और छोड़ जाती है ह्रदय में एक
सूखी टीस
लेकिन टी स के सूखने पर पुनः लेते हैं जन्म
कुछ शब्द
जो संघर्ष कर के जुड़ने की कोशिश करते हैं
ताकि बन जाए एक कविता!
एक और!!