बुधवार, 2 अप्रैल 2014

उदासी का गीत

नदी जब सूख जाती है अचानक
उदास हो जाते हैं कई मौसम..
मछलियां भूल जाती है इतराना..
नावें भूल जाती हैं लड़कपन..
पनिहारिनें भूल जाती हैं ठिठोली..
मिट्टी में दब जाते हैं मीठे गीत...
गगरी भूल जाती है भरने का स्वाद..

सूरज परछाईं भूलता है अपनी,
पंछी भूल जाते हैं विस्तार अपना..
किनारे भुला दिए जाते हैं अचानक...
लाचार बांध पर दूर तक चीखता है मौन..
कुछ भी लौटता नहीं दिखता..
नदी के जाने के बाद..

कहीं कोई ख़बर नहीं बनती,
नदी के सूख जाने के बाद..

निखिल आनंद गिरि 

5 टिप्‍पणियां:

  1. ह्म्म्म .. सोचने पर विवश करती बातें!

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  2. नदी का खिलखिलाना जिंदगी बनाये रखता है प्रकृति की !
    उदास मगर रचना अच्छी लगी !

    जवाब देंहटाएं
  3. :( :(
    उदासी ने आज मुझे भी घेरा है..

    जवाब देंहटाएं
  4. लेकिन

    कविता ज़रूर बनती है


    नदी के सूख जाने के बाद

    जो नदी सी ही होती है आर्द्र

    और छोड़ जाती है ह्रदय में एक

    सूखी टीस

    लेकिन टी स के सूखने पर पुनः लेते हैं जन्म

    कुछ शब्द

    जो संघर्ष कर के जुड़ने की कोशिश करते हैं

    ताकि बन जाए एक कविता!

    एक और!!

    जवाब देंहटाएं

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