उम्र के उस किनारे
किसी विशाल और सजीव मूरत की तरह
खड़ा है जैसे कोई सदियों से।
मैं समंदर की तरह बहता हूं
और पांव छूकर लौट आता हूं।
पूछूंगा कभी उन पांवों से
भीतर तक महसूस हुआ कि नहीं।
सबसे अधिक बातें करना चाहता हूं पिता से
असंख्य तारों से भी ज़्यादा
उन-उन भाषाओं में जो गढ़ी नहीं गईं
उन लिपियों में जिनका नाम तक नहीं मालूम
ऐसे ही संभव हैं कुछ बातें
तुम्हारी आंखों में धंसे दुख के बारे में
जो उतर आता है मेरी नसों में भी
बिना किसी मुहूर्त के
मेरे माथे पर उग आती हैं
तुम्हारे चेहरे की सब झुर्रियां।
गले में कसकर हाथ डाले
बीच सड़क पर किसी नई फिल्म का
गाना गाते, भूलते बीच-बीच में।
सर्दियों में ज़बरदस्ती आइसक्रीम खिलाते
सबसे असभ्य गालियां बकते
सबसे सभ्य दिखते लोगों को
झट खड़े हो जाते मेट्रो में
किसी पिता जैसे चेहरे को देखकर
उम्र के सब मचान लांघते
तुम्हारे बेहद क़रीब आना चाहता हूं।
तुम शक्तिपुंज हो पिता मेरे लिए
किसी मैग्निफआइंग लेंस के सहारे
सहेज लूंगा तुम्हारी सब ऊर्जा
निखिल आनंद गिरि
(पिता के जन्मदिन पर..)
किसी विशाल और सजीव मूरत की तरह
खड़ा है जैसे कोई सदियों से।
मैं समंदर की तरह बहता हूं
और पांव छूकर लौट आता हूं।
पूछूंगा कभी उन पांवों से
भीतर तक महसूस हुआ कि नहीं।
सबसे अधिक बातें करना चाहता हूं पिता से
असंख्य तारों से भी ज़्यादा
उन-उन भाषाओं में जो गढ़ी नहीं गईं
उन लिपियों में जिनका नाम तक नहीं मालूम
ऐसे ही संभव हैं कुछ बातें
तुम्हारी आंखों में धंसे दुख के बारे में
जो उतर आता है मेरी नसों में भी
बिना किसी मुहूर्त के
मेरे माथे पर उग आती हैं
तुम्हारे चेहरे की सब झुर्रियां।
मिलना चाहता हूं उन सब पिताओं से
जो दिखते हैं मुझमें
प्रेमिकाओं की आंखों से।
मैं पिता से प्रेमिकाओं की तरह मिलना चाहता हूं
देवताओं की तरह नहीं। गले में कसकर हाथ डाले
बीच सड़क पर किसी नई फिल्म का
गाना गाते, भूलते बीच-बीच में।
सर्दियों में ज़बरदस्ती आइसक्रीम खिलाते
सबसे असभ्य गालियां बकते
सबसे सभ्य दिखते लोगों को
झट खड़े हो जाते मेट्रो में
किसी पिता जैसे चेहरे को देखकर
उम्र के सब मचान लांघते
तुम्हारे बेहद क़रीब आना चाहता हूं।
तुम्हारी बांहों में मछलियां नहीं हैं
फिर कैसे लड़ लेते हो हम सबके लिए
तुम्हारी आंखों में पावर वाला चश्मा है
फिर कैसे देख लेते हो सबसे दूर तक
तुम कोई बहुरूपिए हो पिता
एक सच्चे मिथक की तरहतुम शक्तिपुंज हो पिता मेरे लिए
किसी मैग्निफआइंग लेंस के सहारे
सहेज लूंगा तुम्हारी सब ऊर्जा
जो एक दिन जला देगी देखना
संसार के सब दुख, छल और नकलीपन।
निखिल आनंद गिरि
(पिता के जन्मदिन पर..)
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग-बुलेटिन - आधा फागुन आधा मार्च मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
'किसी मैग्नीफ़ाइँग लेन्स के सहारे ,
जवाब देंहटाएंसमेट लूँगा तुम्हारी सब ऊर्जा..'
- पिता ने बो दिए जो बीज ऊर्जा के, फ़सल-दर-फ़सल उगते रहेंगे भविष्यों तक ..!
उन्हें हमारा भी नमन!
लाजवाब लिखते हो,
जवाब देंहटाएंकुछ शब्द नहीं बचते कहने को,
कुछ ऐसा लिखा करो दोस्त,
की कुछ शब्द बचें शब्दकोष से,
कि मैं तारीफ़ कर सकूं तुम्हारी,
वर्ना लोग तुमसे पूछते रह जाएंगे
आपकी तारीफ़?
mote chashme se bhi pita dur tak dekhlete hain sahi kaha aapne
जवाब देंहटाएंaap sada hi bahut achchha likhte hian
rachana
ह्रदय को छू दिया..
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