मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

जीवन दुख का विस्तार है

बिछड़ना एक क्रिया हो तो ठीक, प्रतिक्रिया हो तो बहुत दुखद है।
मृत्यु दुख देती नहीं, दुख के रूप में मृत्यु के साक्षियों में बस जाती है। 
जो मृतक के जितना क़रीब होता है, उसमें दुख उतने अनुपात में क़ैद हो जाता है।
जीवन क्या है, एक छोटे दुख का विस्तार ही तो है।
बेटी को बड़ा होते देखना आईना देखने जैसा है।
जब सब कुछ शांत होता है, एक मौन दूसरे मौन से बातें करता है।
मेरी मां सच्चे अर्थों में कवि है। बस उसे लिखना नहीं आता।
मेरा बेटा सुंदर कविताएं लिखना सीख रहा है। बस उसकी भाषा हमें समझना नहीं आता।
अकेलापन एक भ्रम है। भ्रम में जीना अलग मज़ा है।

निखिल आनंद गिरि

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