शुक्रवार, 19 मई 2023

बिहार का सिनेमा कैसा होना चाहिए?

बिहार की भाषाओं, (भोजपुरी/मैथिली/मगही, इत्यादि) में बिहार में ही अच्छी फिल्में बनाने का फायदा और नुक्सान |
फायदा
1. स्थानीय कलाकारों को उनकी ही मातृभाषा में, बिहार में ही काम |
2. स्थानीय भाषाओं में ज्यादा से ज्यादा साहित्य रचने की शुरुआत |
3. पहले के लिखे साहित्य पढ़े जाएंगे, जो कोई बिरले ही पढता है और उनपर फिल्मे बनेंगी |
4. आप अपनी कहानी अपनी भाषा में कहकर उसमे वो रिअलिटी डाल सकते हैं जो आप मराठी, बांगला, असमिया, मलयालम इत्यादि फिल्मों में हम लोग देखते हैं |
5. कलकारों की भाषाओं में कलाकारों के लिए रोजगार खड़ा होने लगता है |
6. कलाकारों का पलायन रुकेगा |
7. सिनेमा के साथ रंगमंच भी बढ़ेगा |
8. रंगमंच के कलाकारों के पास पूरे साल भी काम रहेगा सिनेमा के माध्यम से |
9. आपको जबरजस्ती अपनी हिंदी ठीक करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी | आप सिर्फ अपनी मातृभाषा को और बेहतर कर सकते हैं ऐसा करके आप अपनी मातृभाषा को और समृद्ध बनाते हैं | जैसे दूसरे विकसित राज्य करते हैं |
10. तकनीक से जुड़े लोग जैसे की कैमरामैन, एडिटर इत्यादि के पास भी बिहार में ही काम |
11. सिनेमा और साहित्य बढ़ता है तो पहचान को भी सम्मान मिलने लगता है | जैसे बंगाल या दक्षिण या मराठी गुजराती के साहित्य/सिनेमा से उनकी अच्छी पहचान है |
12. आप बिहार की समस्या पर लगातार फिल्म बनाकर जनता में बदलाव का सन्देश दे सकते हैं, यहां तक की किसी मुद्दे पर आंदोलन भी खड़ा कर सकते हैं l
13. आप लगातार राष्ट्रीय पुरस्कार जीत सकते हैं | जैसे बंगाल के पास १०० से ज्यादा राष्ट्रीय पुरस्कार हैं | बिहार की भाषा में, बिहार में बनी सिर्फ एक फिल्म को है | ये एक सॉफ्ट पॉवर है l
14. बिहार में रहकर कमाने से आप ज्यादा समृद्ध हो सकेंगे और मुंबई में पलायन करके फ़्रस्ट्रेट होने से बच जाएंगे | देश के १२ - १५ राज्य के कलाकारों को बम्बई में भटकने की ज़रूरत नहीं पड़ती है |
15. फिल्मों की लागत बहुत कम हो जाती है और डिजिटल युग में कमाना आसान हो जाता है |
16. बिहार में होने वाले "अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव" में बिहार का सिनेमा भी दिखने लगेगा |
17. अश्लीलता धीरे धीरे कम हो जाएगी और बिहार की पहचान अश्लीलता और भोजपुरी की हलकी पोर्न फिल्मों से नहीं बल्कि अच्छी फिल्मों से होने लगेगी |
18. आम लोगों में अपने अच्छे बदले हुए सिनेमा को देखकर असली गर्व होगा | बिहार पर गर्व करने के असली कारण तब होंगे |
19. हिंदी में काम के लिए भटकने वाले लोग, बम्बई से बिहार आने लगेगें और उनके लिए अच्छी फिल्मों का ऑप्शन रहेगा |
20. बहुत से डायरेक्टर, लेखक, मेरी तरह वालों को बंबई में नहीं रहना पड़ेगा |
21. बिहार की कहानियों को ज्यादा दर्शक मिलेंगे, जैसे सत्यजीत रे की, दक्षिण इत्यादि के फिल्मों को मिलते हैं |
22. बिहार सरकार टैक्स से करोड़ों कमाएगी |
23. टूरिज्म बढ़ेगा |
24. दूसरे धंधे जैसे की केटरिंग, ट्रैवेलिंग, होटल इंडस्ट्री, इत्यादि, इत्यादि सब बढ़ेंगे |
25. हर क्षेत्र में रोज़गार बढ़ेगा |
नुकसान
एक भी नहीं |
😃🙏🥰🌹
- नितिन |

(नितिन नीरा चंद्रा बिहार की बोली और भाषा में फिल्म बनाए जाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं और मिथिला मखान, देसवा, जैक्सन हॉल्ट जैसी बेहतरीन फिल्में भी बना चुके हैं।)

सोमवार, 15 मई 2023

'बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ' के शोर के बीच देखिए स्त्री होने की 'दहाड़'

'दहाड़' देखने लायक वेबसीरीज़ है। तब भी जब पहला एपिसोड अंत आते-आते तक पकाऊ है। हर एपिसोड इतना लंबा  है कि आप एकाध झपकी मारकर फिर से देखने बैठ जाएं तब भी कुछ नया नहीं होता। तब भी जब इसमें लीड रोल में सोनाक्षी सिन्हा हैं, जिनकी एक्टिंग अपनी उम्र के हिसाब से मुझे कभी मेल खाती नहीं दिखी। तब भी जब पूरी कहानी में कई झोल हैं। जैसे पूरे राजस्थान में एक ही थाना इतनी बड़ी मर्डर मिस्ट्री सुलझा रहा है और राष्ट्रीय राजनीति या मीडिया में कहीं कोई चर्चा तक नहीं। तब भी जब पुलिस वाले और अपराधी का बेटा एक ही स्कूल में पढ़ते हैं और आगे जाकर इन्हीं दोनों को आपस में टकराना होता है। तब भी जब आपको लगता है कि ये कोई हरियाणवी ज़बान है लेकिन नहीं ये तो राजस्थान है।

इस तरह से लगेगा कि मैं सीरीज़ नहीं देखने के कारण ज़्यादा गिना रहा हूं। सबसे अच्छी बात जो इस सीरीज़ में है, वो है इसकी डिटेलिंग। कहानी में सिर्फ मर्डर मिस्ट्री नहीं है। कई परते हैं। जात-पात, पुलिस व्यवस्था, इंटरनेट की गिरफ्त में हम-आप, प्रेम संबंधों के बदलते रूप, 'बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ' प्रधान देश में बेटियों की स्थिति चाहे वो एक बैकवर्ड बहू हो, स्कूल जाती बच्ची हो या फिर एक दबंग पुलिस वाली। पूरी कहानी को लीड करती है पुलिस अफसर भाटी जो पिछड़े समुदाय से है। बड़ी जात वाले खाकी वर्दी में भी जात देखकर अपनी कोठी के भीतर घुसने की इजाज़त नहीं देते। बाकी पुलिस अफसर भी सिर्फ पुलिस अफसर नहीं हैं, बाप हैं, पति हैं, छोटी-छोटी कुंठाओं वाले सहकर्मी भी।

कहानी में इतने मुद्दे एक साथ हैं कि सबसे मुख्य कहानी जिसके आसपास बाकी कहानियां बुनी गई हैं, चुपचाप अपना काम करती रहती है। आप देखना चाहते हैं कि हिंदी का एक सीधा-सादा प्रोफेसर, जिसकी बीवी और एक बेटा है, कैसे अब अपना अगला शिकार किसी लड़की को बनाएगा। शुक्र है कि प्रोफेसर के साइकोपैथ होने में कोई बचपन का हादसा या फैमिली हिस्ट्री सीधे तौर पर ज़िम्मेदार नहीं ठहराए गए। बस वो बड़े इत्मीनान से हिंदी की कविताएं पढ़ता है, लड़कियां फंसाता है, हत्या की साज़िश रचता है और फिर किसी अगली हत्या के लिए तैयार होता है। 

प्रोफेसर आनंद के रोल में विजय वर्मा में कई बार मनोज वाजपेयी जैसी कसावट और इरफान ख़ान जैसी गहराई दिखती है। आजकल के अख़बार लगातार जिन सेक्सटॉर्शन, इंटरनेट ठगी, हनीट्रैप जैसी ख़बरों से लदे रहते हैं, ये सीरीज़ उन्हीं ख़बरों के पीछे का एक किरदार लेकर सामने आती है, जिसमें सादगी इतनी है कि कोई भी फिदा हो जाए और साइनाइड खाकर मर जाए। वो किसी पर रहम नहीं करता। न अपने बेटे पर, न भाई पर, न बाप पर। हिंदी साहित्य का इतना क्रूर प्रोफेसर क्या हमने अपने सिनेमा में कभी देखा है, मुझे तो याद नहीं आता।

ये सीरीज़ उन मां-बाप को भी देखनी चाहिए, जिनके घर में स्कूल जाते बड़े होते बच्चे हैं। उन मासूम बच्चों से कब, कैसे, कितनी बात की जाए, उसकी तमीज़ इसके कई किरदार सिखाते हैं। एक एपिसोड में कपीश, प्रोफेसर आनंद के लापता होने पर, इतनी मासूमियत से अपनी मां से पूछता है - 'घर के बाहर पुलिस क्यों आई है, क्या पापा खो गए हैं' कि दिल धक से हो उठता है। एक एपिसोड में थाने का इंचार्ज देवी सिंह अपने स्कूल जाते बेटे को जिस संजीदगी से मोबाइल पर अच्छा-बुरा देखने के बारे में समझाता है, वो हम सबके सीखने लायक है। एक बेटी, जो किसी काम्पटीशन में दिल्ली जाना चाहती है, मगर मां रोकती है, तो बाप बेटी का हौसला बढ़ाता है। 

'दहाड़' की सबसे अच्छी बात ये रही कि इसके सीक्वेल की कोई गुंजाइश कम ही दिखती है। मुझे सीक्वल बोर करते हैं, सोनाक्षी सिन्हा की तरह। माधुरी दीक्षित के जन्मदिन पर सोनाक्षी सिन्हा को देखकर काम चलाना बदनसीबी नहीं तो और क्या है। फिर भी, सोनाक्षी ने अपने करियर का सबसे अच्छा काम इसी सीरीज़ में किया है। शाहिद कपूर वाली सीरीज़ 'फर्ज़ी' से कम फर्ज़ी है, इसीलिए भी देखनी चाहिए।

निखिल आनंद गिरि

गुरुवार, 4 मई 2023

क्षणिकाएं


1) मुझे सुनने वाले कम रहे 
मगर अक्सर कहते हैं
जब मैं सबसे ज़्यादा चुप रहा
सबसे ज़्यादा कहने को था।

2) एक किताब पढ़ने में 
लग गए कई दिन 
और फिर भी कुछ हासिल नहीं हुआ
इस बार किसी बुज़ुर्ग से मिला हूं
दस किताबों का हासिल है 
मेरे पास।

3) रेलवे फाटक पर 
गाड़ियां अटकी हैं
साइकिल अटके हैं
पूरा गांव किसी बुज़ुर्ग की तरह
पहले निहारेगा जाने वालों को
फिर विदा करेगा

रेलगाड़ी एक बच्चे की तरह
इठलाती हुई गुज़र जाएगी


4)
कपड़े किसी और के
जूता किसी और का
घड़ी किसी और की
बस पुराना शहर मेरा है
और मैं किसी और का।

निखिल आनंद गिरि

सोमवार, 23 जनवरी 2023

उदास मौसम का प्रेमगीत

ये सच है कि मेरे सपनों में 
जादू वाली परियां आती थीं बचपन में
मगर उनका चेहरा ग़ायब हो जाता था भोर से पहले
तुम्हारा होना किसी भोर के सपने का सच होना लगता है

तुम्हारा होना
संसार की सबसे सुंदर घड़ी का कलाई पर होना है
जिसमें बुरे से बुरा समय भी निखर कर आता है

तुम्हारा होना
किसी गुरुद्वारे में प्रवेश के पहले
पानी में पैर रखने जितना पवित्र
जहां से जीवन एक गुरुद्वारा लगता है

जैसे दिल्ली कोई बेहद निर्मम, भावहीन शहर नहीं
यह अथाह शोर की राजधानी नहीं
किसी संगत में बजती बानी में 
बदल जाता है
जहां घर से दफ़्तर और दफ़्तर से घर लौटना
सपनों का मर जाना नहीं लगता।

तुम्हारा होना मुझे इस क़दर मज़बूत करता है
जैसे मैं कोई दरवेश हो जाता हूं
और किसी आखिरी सांस ले रहे निर्जीव शरीर में भी 
जीवन फूंक देने के विश्वास से भर जाता हूं

मौन सबसे सुंदर भाषा हो जाती है
जब मैं होता हूं तुम्हारे साथ  
जब मेरे रुखे चेहरे को स्पर्श करते हैं 
तुम्हारी कटी-छिली उंगलियों वाले हाथ
यह देह का स्पर्श नहीं
आत्मा का मिलन लगता है

तुम्हारी बाहें दो पंख हैं
तुम्हारी पीठ पर किसी शिशु-सा कस कर बंधा मैं
पैदल चलते हुए हम अचानक
कितनी दूर निकल जाते हैं ब्रह्मांड में
 
अब मेरी दीवारों में कोई सीलन नहीं
मेरी दोस्तों से कोई अनबन नहीं
मेरे मोज़ों में कोई बदबू नहीं
मेरे पहियों में कोई पंक्चर नहीं
मेरे पिता को कोई बीमारी नहीं
इस दुनिया में कोई युद्ध नहीं

तुम्हारे साथ होना अपनी जड़ों में होने जैसा है
जहां कमियां कोई घाव नहीं लगतीं चरित्र का
हम पैसे खोने पर दुखी नहीं होते
हम रास्ता भटकने पर डरते नहीं
दुख कोई छिपाने जैसी मजबूरी नहीं लगती

जहां मैं एक ही वक्त में 
बेटा, भाई, पति, पिता,
मुजरिम, शराबी, फ़कीर
यानी जैसा चाहूं वैसे का वैसा 
हो सकता हूं

जहां मैं जब चाहूं अपनी मातृभाषा में 
देर तक रो सकता हूं 

निखिल आनंद गिरि

मंगलवार, 17 जनवरी 2023

रविवार, 8 जनवरी 2023

कौन मुकेश?

मेरे सभ्य होने की तमाम संभावनाओं को अल्ताफ़ राजा ने नष्ट किया
ऐसा कहते हुए न दुख है न गर्व
मगर ऐसा है।

ऐसा कहना संगीत के प्रति नाइंसाफी होगी तो होगी
मगर यह तो है कि 
ख़राब गीतों ने मुझे ही नहीं
एक पूरे समय को सिलसिलेवार ढंग से प्रदूषित किया है।

मेरी प्रेमिका जब इनबॉक्स में मेरा प्रिय गायक पूछती है
तो पलट कर गर्व करने के बजाय पूछती है " कौन मुकेश?"
उसका प्रिय गाना है "शीला की जवानी"
और मैं पूछता हूं क्यूं तो उसका जवाब है -
'एक रील की क़ीमत तुम क्या जानो कवि बाबू?'

ऐसा लगता है कि सब बड़े काम अतीत में हो गए 
सब बड़े लोग जन्मे पिछली सदियों में
जिन्हें प्रार्थना सभाओं में गोली मार दी गई
और हम अभिशप्त रहे 
बुरा देखने, बहुत बुरा सुनने और सबसे बुरा कहने वाले बंदरों की सोहबत में जीने को।

बंदर इतने अविश्वसनीय कि
सबसे विश्वसनीय मंदिरों के अहाते में भी
आइस्क्रीम चुराकर खाते हैं
मोबाइल लेकर उड़ जाते हैं
और सेल्फी खिंचवाते हैं।

सेल्फी की याद आते ही 
मेरा समय मुझे अश्लील गीत से कहीं ज़्यादा
एक भद्दे चुटकुले की तरह लगने लगता है
जहां कलम और कैमरा और स्कूल और पुस्तकालय और मंच और महफिल और बहसें और सेमिनार और प्रेमी और प्रेमिकाएं और ताज़ा फल और हरी सब्ज़ियां छोड़कर 
तमाम भद्रजन किसी एक मज़बूत आदमी के साथ सेल्फी को लेकर भगदड़ कर सकते हैं
दंगे भड़का सकते हैं
और तो और खुद भी दंगाई हो सकते हैं।

हो सकता है आपको मेरी बातों पर यकीन न हो
मगर आप अकेले नहीं हैं इस दुनिया में 
जिसे यकीन नहीं रहा कवियों पर।
यह यकीन को नमकीन बनाकर गटक जाने का युग है।

चूंकि बात गीतों से शुरू हुई थी
किसी चिंतक या संत से नहीं
बेहतर यही है कि आपसे न्यूनतम लोकतांत्रिक होने की उम्मीद रखते हुए एक अश्लील गीत के साथ इसे ख़त्म करते हुए कहूं -
"एक चुम्मा तो बनता है"।

निखिल आनंद गिरि

सोमवार, 2 जनवरी 2023

क्रिसमस की रात और चार्ली चैपलिन की बात

चार्ली चैपलिन ने अपनी बेटी को बहुत ही सुंदर खत लिखा था। यह खत सभी को पढ़ना चाहिए। 
 
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चार्ली ने अपनी नृत्यांगना बेटी को एक मशहूर खत लिखा। कहा- मैं सत्ता के खिलाफ विदूषक रहा, तुम भी गरीबी जानो, मुफलिसी का कारण ढूंढो, इंसान बनो, इंसानों को समझो, जीवन में इंसानियत के लिए कुछ कर जाओ, खिलौने बनना मुझे पसंद नहीं बेटी। मैं सबको हंसा कर रोया हूं, तुम बस हंसते रहना। बूढ़े पिता ने प्रिय बेटी को और भी बहुत कुछ ऐसा लिखा।

मेरी प्यारी बेटी,
रात का समय है। क्रिसमस की रात। मेरे इस छोटे से घर की सभी निहत्थी लड़ाइयां सो चुकी हैं। तुम्हारे भाई-बहन भी नीद की गोद में हैं। तुम्हारी मां भी सो चुकी है। मैं अधजगा हूं, कमरे में धीमी सी रौशनी है। तुम मुझसे कितनी दूर हो पर यकीन मानो तुम्हारा चेहरा यदि किसी दिन मेरी आंखों के सामने न रहे, उस दिन मैं चाहूंगा कि मैं अंधा हो जाऊं। तुम्हारी फोटो वहां उस मेज पर है और यहां मेरे दिल में भी, पर तुम कहां हो? वहां सपने जैसे भव्य शहर पेरिस में! चैम्प्स एलिसस के शानदार मंच पर नृत्य कर रही हो। इस रात के सन्नाटे में मैं तुम्हारे कदमों की आहट सुन सकता हूं। शरद ऋतु के आकाश में टिमटिमाते तारों की चमक मैं तुम्हारी आंखों में देख सकता हूं। ऐसा लावण्य और इतना सुन्दर नृत्य। सितारा बनो और चमकती रहो। परन्तु यदि दर्शकों का उत्साह और उनकी प्रशंसा तुम्हें मदहोश करती है या उनसे उपहार में मिले फूलों की सुगंध तुम्हारे सिर चढ़ती है तो चुपके से एक कोने में बैठकर मेरा खत पढ़ते हुए अपने दिल की आवाज सुनना।
...मैं तुम्हारा पिता, जिरलडाइन! मैं चार्ली, चार्ली चेपलिन! क्या तुम जानती हो जब तुम नन्ही बच्ची थी तो रात-रातभर मैं तुम्हारे सिरहाने बैठकर तुम्हें स्लीपिंग ब्यूटी की कहानी सुनाया करता था। मैं तुम्हारे सपनों का साक्षी हूं। मैंने तुम्हारा भविष्य देखा है, मंच पर नाचती एक लड़की मानो आसमान में उड़ती परी। लोगों की करतल ध्वनि के बीच उनकी प्रशंसा के ये शब्द सुने हैं, इस लड़की को देखो! वह एक बूढ़े विदूषक की बेटी है, याद है उसका नाम चार्ली था।
...हां! मैं चार्ली हूं! बूढ़ा विदूषक! अब तुम्हारी बारी है! मैं फटी पेंट में नाचा करता था और मेरी राजकुमारी! तुम रेशम की खूबसूरत ड्रेस में नाचती हो। ये नृत्य और ये शाबाशी तुम्हें सातवें आसमान पर ले जाने के लिए सक्षम है। उड़ो और उड़ो, पर ध्यान रखना कि तुम्हारे पांव सदा धरती पर टिके रहें। तुम्हें लोगों की जिन्दगी को करीब से देखना चाहिए। गलियों-बाजारों में नाच दिखाते नर्तकों को देखो जो कड़कड़ाती सर्दी और भूख से तड़प रहे हैं। मैं भी उन जैसा था, जिरल्डाइन! उन जादुई रातों में जब मैं तुम्हें लोरी गा-गाकर सुलाया करता था और तुम नीद में डूब जाती थी, उस वक्त मैं जागता रहता था। मैं तुम्हारे चेहरे को निहारता, तुम्हारे हृदय की धड़कनों को सुनता और सोचता, चार्ली! क्या यह बच्ची तुम्हें कभी जान सकेगी? तुम मुझे नहीं जानती, जिरल्डाइन! मैंने तुम्हें अनगिनत कहानियां सुनाई हैं पर, उसकी कहानी कभी नहीं सुनाई। वह कहानी भी रोचक है। यह उस भूखे विदूषक की कहानी है, जो लन्दन की गंदी बस्तियों में नाच-गाकर अपनी रोजी कमाता था। यह मेरी कहानी है। मैं जानता हूं पेट की भूख किसे कहते हैं! मैं जानता हूं कि सिर पर छत न होने का क्या दंश होता है। मैंने देखा है, मदद के लिए उछाले गये सिक्कों से उसके आत्म सम्मान को छलनी होते हुए पर फिर भी मैं जिंदा हूं, इसीलिए फिलहाल इस बात को यही छोड़ते हैं।
...तुम्हारे बारे में ही बात करना उचित होगा जिरल्डाइन! तुम्हारे नाम के बाद मेरा नाम आता है चेपलिन! इस नाम के साथ मैने चालीस वर्षों से भी अधिक समय तक लोगों का मनोरंजन किया पर हंसने से अधिक मैं रोया हूं। जिस दुनिया में तुम रहती हो वहा नाच-गाने के अतिरिक्त कुछ नहीं है। आधी रात के बाद जब तुम थियेटर से बाहर आओगी तो तुम अपने समृद्ध और सम्पन्न चाहने वालों को तो भूल सकती हो, पर जिस टैक्सी में बैठकर तुम अपने घर तक आओ, उस टैक्सी ड्राइवर से यह पूछना मत भूलना कि उसकी पत्नी कैसी है? यदि वह उम्मीद से है तो क्या अजन्मे बच्चे के नन्हे कपड़ों के लिए उसके पास पैसे हैं? उसकी जेब में कुछ पैसे डालना न भूलना। मैंने तुम्हारे खर्च के लिए पैसे बैंक में जमा करवा दिए हैं, सोच समझकर खर्च करना।
...कभी कभार बसों में जाना, सब-वे से गुजरना, कभी पैदल चलकर शहर में घूमना। लोगों को ध्यान से देखना, विधवाओं और अनाथों को दया-दृष्टि से देखना। कम से कम दिन में एक बार खुद से यह अवश्य कहना कि, मैं भी उन जैसी हूं। हां! तुम उनमें से ही एक हो बेटी!
...कला किसी कलाकार को पंख देने से पहले उसके पांवों को लहुलुहान जरूर करती है। यदि किसी दिन तुम्हें लगने लगे कि तुम अपने दर्शकों से बड़ी हो तो उसी दिन मंच छोड़कर भाग जाना, टैक्सी पकड़ना और पेरिस के किसी भी कोने में चली जाना। मैं जानता हूं कि वहां तुम्हें अपने जैसी कितनी नृत्यागनाएं मिलेंगी। तुमसे भी अधिक सुन्दर और प्रतिभावान फर्क सिर्फ इतना है कि उनके पास थियेटर की चकाचौंध और चमकीली रोशनी नहीं। उनकी सर्चलाईट चन्द्रमा है! अगर तुम्हें लगे कि इनमें से कोई तुमसे अच्छा नृत्य करती है तो तुम नृत्य छोड़ देना। हमेशा कोई न कोई बेहतर होता है, इसे स्वीकार करना। आगे बढ़ते रहना और निरंतर सीखते रहना ही तो कला है।
...मैं मर जाउंगा, तुम जीवित रहोगी। मैं चाहता हूं तुम्हें कभी गरीबी का एहसास न हो। इस खत के साथ मैं तुम्हें चेकबुक भी भेज रहा हूं ताकि तुम अपनी मर्जी से खर्च कर सको। पर दो सिक्के खर्च करने के बाद सोचना कि तुम्हारे हाथ में पकड़ा तीसरा सिक्का तुम्हारा नहीं है, यह उस अज्ञात व्यक्ति का है जिसे इसकी बेहद जरूरत है। ऐसे इंसान को तुम आसानी से ढूंढ सकती हो, बस पहचानने के लिए एक नजर की जरूरत है। मैं पैसे की इसलिए बात कर रहा हूं क्योंकि मैं इस राक्षस की ताकत को जानता हूं।
...हो सकता है किसी रोज कोई राजकुमार तुम्हारा दीवाना हो जाए। अपने खूबसूरत दिल का सौदा सिर्फ बाहरी चमक-दमक पर न कर बैठना। याद रखना कि सबसे बड़ा हीरा तो सूरज है जो सबके लिए चमकता है। हां! जब ऐसा समय आये कि तुम किसी से प्यार करने लगो तो उसे अपने पूरे दिल से प्यार करना। मैंने तुम्हारी मां को इस विषय में तुम्हें लिखने को कहा था। वह प्यार के सम्बन्ध में मुझसे अधिक जानती है।
...मैं जानता हूं कि तुम्हारा काम कठिन है। तुम्हारा बदन रेशमी कपड़ों से ढका है पर कला खुलने के बाद ही सामने आती है। मैं बूढ़ा हो गया हूं। हो सकता है मेरे शब्द तुम्हें हास्यास्पद जान पड़ें पर मेरे विचार में तुम्हारे अनावृत शरीर का अधिकारी वही हो सकता है जो तुम्हारी अनावृत आत्मा की सच्चाई का सम्मान करने का सामर्थ्य रखता हो।
...मैं ये भी जानता हूं कि एक पिता और उसकी सन्तान के बीच सदैव अंतहीन तनाव बना रहता है पर विश्वास करना मुझे अत्यधिक आज्ञाकारी बच्चे पसंद नहीं। मैं सचमुच चाहता हूं कि इस क्रिसमस की रात कोई करिश्मा हो ताकि जो मैं कहना चाहता हूं वह सब तुम अच्छी तरह समझ जाओ।
...चार्ली अब बूढ़ा हो चुका है, जिरल्डाइन! देर सबेर मातम के काले कपड़ों में तुम्हें मेरी कब्र पर आना ही पड़ेगा। मैं तुम्हें विचलित नहीं करना चाहता पर समय-समय पर खुद को आईने में देखना उसमें तुम्हें मेरा ही अक्स नजर आयेगा। तुम्हारी धमनियों में मेरा रक्त प्रवाहित है। जब मेरी धमनियों में बहने वाला रक्त जम जाएगा तब तुम्हारी धमनियों में बहने वाला रक्त तुम्हें मेरी याद कराएगा। याद रखना, तुम्हारा पिता कोई फरिश्ता नहीं, कोई जीनियस नहीं, वह तो जिन्दगी भर एक इंसान बनने की ही कोशिश करता रहा। तुम भी यही कोशिश करना।

ढेर सारे प्यार के साथ 
चार्ली
क्रिसमस 1965

(फेसबुक मित्र स्वतंत्र मिश्र की फेसबुक वॉल से साभार)

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

याद का आखिरी पत्ता

विजय छल पर निश्छल की कोलाहल पर शांति की युद्ध पर विराम की अनेक पर एक की हंसी पर आंसू की  मृत्यु एक उपलब्धि है जिस पर गर्व करना मुश्किल है तु...