शनिवार, 22 मई 2021

इच्छाओं का कोरस

मेरी भोली इच्छा थी कि अच्छा बनूं 
मगर यह अंतिम इच्छा की तरह नहीं था
और भी इच्छाएँ चलती रहीं साथ-साथ

समोसे की इच्छा सतत बनी रही 
मगर चटनी या आलू के बिना उन्हें पूरा करना असंभव था.
दारू पीने की इच्छा जितनी रही
उसका एक अंश भी नहीं पिया मैंने अब तक

राजा बनने से अधिक 
उसकी आँखों में आँखें डालकर
बात करने की इच्छा प्रबल रही

अमरीका या यूरोप न सही,
किसी ऐसे देश में जाने की इच्छा
अवश्य रही
जहाँ लोग हॉर्न की आवाज़ तक से चौंक जाते हैं
मगर उनका बुरा नसीब उन्हें युद्ध के टैंक की आवाज़ों से भर देता है

उन बच्चों से मिलने की इच्छा
जिनका बचपन माँ-बाप की लड़ाइयों में नष्ट हुआ
या सिर्फ अस्पतालों में बीत गया
रोने से अधिक
उन्हें चुप कराने की इच्छा

अनंत फिल्में देखी इच्छाओं से परे
तब भी मारधार की इच्छा नहीं
प्यार करने की इच्छा पर ही मन ठहरा
अनंत बार प्यार किया उन लड़कियों से
जिनसे नहीं मिला
मिलने की संभावना भी नहीं

जिनसे मिला जीवन में
कभी अभाव में
या समाज के दबाव में
उनसे क्या अपेक्षा रखता
किसी बैंक खाते की तरह 
बना रहा रिश्ते में
भविष्य में काम आने का भ्रम लिए

रात की इच्छाएं एक गहरे सुरंग में ले जाती हैं
जहाँ मैं नींद को चकमा देता हुआ प्रवेश करता हूँ
उम्र और बेचैनी के हिसाब से
और फिर न निकलने की इच्छा 
सुबह से पहले दम तोड़ देती है

इच्छाओं में दिल्ली आना कभी नहीं रहा
गाँव में जीवन गुज़ारना एक इच्छा थी
मगर अब गाँव गाँव नहीं रहे
और जीवन भी जीवन कहाँ रहा.

निखिल आनंद गिरि

रविवार, 16 मई 2021

अकेलेपन के नोट्स - 2

कुछ साल पहले एक फिल्म आई थी. कहानी एक नए कपल की थी जो शादी के बाद अपने किराये के कमरे में स्कूटर पर सवार होकर बसने आते हैं. पूरा मोहल्ला उन्हें (नई दुल्हन को) जी भरकर देखता है. मकान मालिक, उसकी बीवी, सब्ज़ी वाला, किराने की दुकान वाला, सब के सब. पहले दिन जब लड़का स्कूटर पर ऑफिस जाता है तो फिर लौटकर नहीं आता. कोई ख़बर भी नहीं कि ज़िंदा है या.. 

रिश्तेदार सलाह देते हैं कि अब उसे सफेद कपड़े में ही रहना चाहिए, क्यूंकि रिवाज है. मकान मालकिन अपने भाई से उसकी शादी कर देना चाहती है क्यूंकि उसकी उम्र अब काफी हो चुकी है.मकान मालिक उसे कभी छूने की, कभी देखने की कोशिशें करता रहता है.

जब सबको लगता है कि लड़की मकान मालकिन के भाई से शादी कर ही लेगी, हम देखते हैं कि वो घर के सामने सब्ज़ी वाले के साथ चली जाती है. सब्ज़ी वाले ने एक बार उसे ग़लत नज़र से देखने की कोशिश की थी, मगर लड़की ने जब समझाया तो फिर उसने अच्छी दोस्ती निभाई. 

मुझे उन शादियों से बहुत चिढ़ होती है जिसमें हम बरसों साथ रहकर सिर्फ शरीर बाँट रहे होते हैं, भरोसा नहीं. जिसके लिए रोटियां जला रहे होते हैं, कभी कभी अंगुलियाँ भी, उसे ये सब सिर्फ एक डेली रूटीन की तरह लगता है. रिवाज की तरह. 

किसी को हथिया लेने भर का रिश्ता कोई रिश्ता नहीं होता. अधिकार किसी रिवाज के बोझ से नहीं, कमाया जाना चाहिए. 

जिस फिल्म का ज़िक्र किया, उसमें न तो पति ने, न मकान मालकिन के भाई ने उस लड़की का भरोसा कमाया. वो सिर्फ अपनी ज़रूरत पूरी कर रहे थे. 

हमारी ज़िंदगी में एक तीसरे सब्ज़ी वाले की जगह भी हमेशा होनी चाहिए.

निखिल आनंद गिरि

शुक्रवार, 14 मई 2021

अकेलेपन के नोट्स - 1

काम के सिलसिले में शायद तीन-चार साल पहले दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में में लंच के लिए गया था. मेरे नम्बर पर तब से वहाँ के ऑफर आते रहते हैं. मजाल है कि मैंने एक बार भी रिप्लाई किया किया हो.उस लड़की के लिए कभी कभी तरस भी आता रहा मगर कुछ खास नहीं.
इधर कुछ दिनों से फिर मेसेज ज़्यादा आने लगे हैं. होम डिलिवरी के ऑफर ज़्यादा. सोच कर ही रूह बैठ जाती है कि इस आइसोलेशन के दौर में फाइव स्टार होटल का खाना घर मंगवाना कितना बेवकूफ़ी भरा खयाल है. उस लड़की ने कहा - "मंगा लीजिए सर, होटल मे आजकल कोई नहीं आता. हमारी सैलरी भी कम आती है" 
मैंने कुछ जवाब नहीं दिया मगर उस लड़की से मिलने का मन हुआ. अपने हाथ की बनी खिचड़ी खिलाने का. उसकी उम्मीद एक ग़लत आदमी से है. 
हम सब किसी ग़लत आदमी से सब सही हो जाने की उम्मीद में हैं. 
भरम में जीना अलग मज़ा है. 

निखिल आनंद गिरि

मंगलवार, 11 मई 2021

गिरते हुए

कोई जगह थी बहुत बंजर या निर्वात 
जहाँ गिरा मैं
एक भरा पूरा जीवन लिए मनुष्य 
अकस्मात्

मैं जिस ऊंचाई से गिरा
टूटा
टूटने की आवाज़ गिरने से पहले खत्म हुई
रोना भी गिरने गिरने तक सूख चुका

अंतिम सांस से पहले
पृथ्वी भर का दुःख
तुम्हारी नरम हथेलियों ने थाम लिया
मेरी चुप्पियों की भाषा पढ़ी तुमने
और मैं एक नयी भाषा में रोया
चीखा, चिल्लाया
तुम्हारे क़रीब आया

तुम्हारा एक स्पर्श
समर्पण से भरा हुआ
मेरा जीवन- छलनी, आहत
फिर से हरा हुआ

मेरा सारा वजूद
तुम्हारे सीने में दुबका दिया है मैंने
तुम उसे महफूज़ रखना

फिर-फिर आऊंगा 
और शिखर लांघकर 
और अधिक ऊंचाइयों से 
और भयावह अंधेरी अकेली रातों में
थर थर काँपता हुआ
तुम्हें पुकारता 
हाँफ़ता हुआ ..

निखिल आनंद गिरि

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

गाना डॉट कॉम का ‘आपदा में अवसर’ उर्फ़ ‘लस्ट बर्ड्स विद रिया’

जब आपको लगता है कि सोशल मीडिया ही दुनिया है और पूरी दुनिया किसान आंदोलन, कोरोना वैक्सीन पर बहस में उलझी है, ठीक उसी वक्त इंसानी आबादी का एक बड़ा गुच्छा टाइम्स ग्रुप के मशहूर पोर्टल गाना डॉट कॉम के बैनर तले रिया की बेडरूम कहानियों में कान लगाए बैठा है। इसे मैं एक रिसर्च स्कॉलर के तौर पर ख़ुद के लिए और एक बिज़नेस प्लैटफॉर्म के तौर पर गाना डॉट कॉम दोनों के लिए आपदा में अवसरकहना चाहूंगा जो ब्रह्मांड के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री का दिया गया जुमला है।


साल 2020 के दौरान कोरोना महामारी में सबने अपने-अपने हिसाब से समय का सदुपयोग किया है। मैंने रेडियो पर रिसर्च करते करते एक दिन गाना डॉट कॉम पर पॉडकास्ट की एक नई सीरीज़ को क्लिक कर दिया जो दिसंबर 2020 में पहली बार पोस्ट हुआ था। नाम था लस्ट बर्ड्स विद रिया। स्कूल के दिनों में लुगदी किताबों (पल्प फिक्शन) की शक्ल में बिकने वाला पॉर्न, साइबर कैफे वाले युग में पांच रुपये प्रति घंटा के रास्ते वेबसाइट्स तक तस्वीरों और वीडियो के अवतार तक पहुंचा। मगर, आवाज़ की दुनिया यानी पॉडकास्ट में ये प्रयोग मेरे लिए पहला अनुभव था। फोटो-वीडियो की बाढ़ के ज़माने में सिर्फ ऑडियो के सहारे पॉर्न कंटेंट सोचना और ये मानना कि जनता हाथोंहाथ लेगी, किसी क्रांतिकारी क़दम से कम नहीं है।

लस्ट विद रिया पॉडकास्ट पॉर्न है जिसमें लगभग हर हफ्ते एक दस-बारह मिनट की ऑडियो कहानी डाली जाती है। पॉडकास्ट शुरू होते ही अंग्रेज़ी में डिस्क्लेमर आता है कि ये कहानियां 18 वर्ष की उम्र के बाद के श्रोताओं के लिए ही है, फिर बिना रुके हिंदी में कहानियां शुरू होती हैं। ये कहानी रिया सुनाती हैं जो एक आइएएस ऑफिसर की हाउसवाइफ हैं और उनका मानना है कि हर इंसान सेक्स का भूखा होता है, जिसे दिन में कम से कम दो बार इसकी ख़ुराक चाहिए। मगर वो सेक्स दुनिया की ऐसी भूखी हैं, जो बुफे में बिलीव करती है। कभी लिफ्ट में, कभी स्विमिंग पूल में, डॉक्टर क्लीनिक में, योगा के बहाने, कभी वैकेशन के दौरान उन्हें नए-नए मर्द मिलते हैं, जिनके साथ वो बड़े चाव से अपने सेक्स अनुभव सुनाती हैं।

रेडियो प्रोग्रामिंग में ड्रामा फॉर्मेट के लिहाज़ से इसमें आवाज़ के सारे पहलू मौजूद हैं। रिया और उसे मिलने वाले किरदारों के नाटकीय नैरेशन हैं, आपको नाज़ुक पलों में ले जाता बैकग्राउंड म्यूज़िक है और रिया के साथ मर्दों के मिलने की आवाज़ों के सस्ते साउंड इफेक्ट्स भी। कई बार ऐसा भी होता है कि रिया जब आपको बहुत ध्यान से सुनने को मजबूर करना चाहती है, आपकी हंसी छूट जाए कि ये सब क्या हो रहा है।  लेकिन कुल मिलाकर पॉर्न पॉडकास्ट तैयार करने में मेहनत की गई है, ऐसा कहा जा सकता है।

रिया नाम भी एक तरह का ट्रांज़िशन कहा जा सकता है। हिंदी के लुगदी पॉर्न का पाठक मस्तराम नाम से वाकिफ़ होगा। फिर सविता, वेलम्मा जैसे देसी नाम से पाठकों-दर्शकों की नई पीढ़ी तैयार हुई। इस ऑडियो किरदार का नाम रिया है। थोड़ा-सा मॉडर्न, कम से कम मस्तराम से बहुत अलग परिवेश में पली-बढ़ी, पढ़ी-लिखी। मगर इच्छाएं वही आदम-हव्वा वाली। इसे एक फॉर्मूला पॉर्न की तरह कहा जा सकता है, जिसमें हर बार कोई लड़की या महिला ही अपनी महत्वाकांक्षी कहानियां सुनाए।

इन ऑडियो कहानियों मे कल्पना (इमैजिनेशन) की जगह है भी और नहीं भी। मेरी सांसे राजधानी एक्सप्रेस से भी तेज़ हो गई थीं, उसकी पतंग मेरे हाथ में थी जैसे डायलॉग आपको अलग कल्पना-लोक में ले जाते हैं, वहीं सी ग्रेड फिल्मों की तरह कामुक पलों के बैकग्राउंड साउंड इफेक्ट वैसे के वैसे ही चेंप दिए गए हैं।

कम लिखूं, ज़्यादा समझिए। विशेष रिया की मनोहर कहानियां सुनने पर।

निखिल आनंद गिरि

मंगलवार, 9 जून 2020

(कोरोना- काल की छिटपुट कविताएँ)


1)  किसी दिन सोता मिला अपनी ही कार में,
तो कोई चिड़िया ही छूकर देखेगी
कितना बचा है जीवन।
लोग चिड़िया के मरने का इंतज़ार करेंगे
और मेरे शरीर को संदेह से देखेंगे।
स्पर्श की सम्भावनाएँ इस कदर ध्वस्त हैं।

2)
आप मानें या न मानें
इस वक़्त जो मास्क लगाए खड़ा है मेरी शक्ल में
आप सबसे हँसता- मुस्कुराता, अभिनय करता
कोई और व्यक्ति है।
आप चाहें तो उतार कर देखें उसका मास्क
मगर ऐसा करेंगे नहीं
आप भी कोई और हैं
चेहरे पर चेहरा चढाये।
ठीक ठीक याद करें अपने बारे में।
मैं क्रोध में एक रोज़ इतना दूर निकल गया
कि मेरी देह छूट गयी कमरे में।
मुझे ठीक ठीक याद है।

3) तुम्हे कोई खुश करने वाली बात ही सुनानी है इस बुरे समय में
तो मैं इतना ही कह सकता हूँ
पिता कई बीमारियों के साथ जीवित हैं
अब भी।
माँ आज भी अधूरा खाकर कर लेती है
तीन आदमियों के काम।
घर मेें और भी लोग हैं
मगर मैंने उन्हें रिश्तों के बोझ से आज़ाद कर दिया है

मैं पिछले बरस आखिरी बार घर की याद में रोया था
फिर अब तक घर में क़ैद हूँ।

4)
मृत्यु की प्रतीक्षा में कुछ भले लोग चले जा रहे हैं
भाग नहीं रहे।
मृत्यु की प्रतीक्षा में कुछ लोग थालियां पीट रहे हैं
घंटियाँ, शंख इत्यादि बजा रहे हैं।
(इत्यादि बजता भी है और नहीं भी)
कुछ लोग लूडो खेल रहे हैं मृत्यु की प्रतीक्षा में।
जिन्हें सबसे पहले मर जाना चाहिए था
बीमारी से कम, शर्म से अधिक
वही जीवन का आनंद ले रहे हैं।

मृत्यु एक प्रेमिका है
जिसकी प्रतीक्षा निराश नहीं करेगी।
वो एक दिन उतर आयेगी साँसों में
बिना आमंत्रण।
दुनिया इतनी एकरस है कि
मरने के लिए अलग बीमारी तक नहीं।

निखिल आनंद गिरि

सोमवार, 1 जून 2020

मेरे 'बंधु' प्रेम भारद्वाज का जाना..

इन दिनों जिस पीड़ा और हताशा से गुज़र रहा हूंं, उसे कोई बिना कहे ठीकठीक समझ सकता था, तो वो प्रेम भारद्वाज ही थे। अपनी सेहत के सबसे बुरे दिनों में भी वो मुझे फोन करके हिम्मत देना नहीं भूलते थे।  नोएडा के मेट्रो अस्पताल में जब उनके कैंसर का पता चला तो बड़े मस्त अंदाज़ में बोले - 'बंधु, गांंठ शरीर में हो या मन में,  अच्छी नहीं होती।'   सच कहूं तो हम समझ चुके थे कि हमारा साथ बहुत लंबा नहीं रहने वाला है, मगर एक-दूसरे से ऐसा कहने से डरते थे।  
मैं कोई दावा नहीं करता कि उन्हें सबसे बेहतर समझता था मगर ये दावा है कि मुझ पर आंख मूंदकर वो यकीन करते थे। अपनी कमज़ोरियों पर इतना खुलकर बात करते थे कि मुझे डर लगता था कि ये भरोसा कितना रख पाऊंगा। उनके आसपास उन्हें इत्मीनान से सुनने वाला कोई नहीं था। न घर में, न बाहर। जितना भी समय हम साथ गुज़ारते, वो खुलकर बोलते जाते। मुझे उनको सुनना अच्छा लगता था। इस बातचीत में साहित्यिक बातचीत, उनके आसपास के मौकापरस्त लोगों पर कम ही चर्चा होती। कभी-कभी हंसने का मन होता तो मैं ही चुटकी लेने के लिए कोई नाम छोड़ देता।  हमारे पास कई बेहतर बातें होतीं। जैसे कोई स्कूल या कॉलेज के बिछड़े दोस्त आपस में किया करते हैं। मुझे लगता है वो जिस किसी से मिलते होंगे, इसी अपनेपन से मिलते होंगे। 
जब भी अपनी खटारा कार में मुझसे कहीं भी मिलते, थोड़ी देर रोकते, कार का दरवाज़ा खोलते और 'पाखी' की कॉपी या कोई और मैगज़ीन या किताब ज़रूर पकड़ा देते।कम लिखने और ज़्यादा पढ़ने के लिए हमेशा उकसाते रहते।
लता जी (उनकी पत्नी) के जाने के बाद वो बहुत अकेले हो गए थे। उन्होंने बहुत दिनों बाद बताया था कि लता जी की अस्थियां चुराकर उन्होंने अपने घर की दराज़ में छिपा ली थीं। उनका प्रेम ऐसा ही था। अतिभावुक, अति निश्छल। लता जी के जाने के बाद कई महिलाएं भी उनके क़रीब आईं। अधिकतर छपास की उम्मीद में। प्रेम जी सब समझते थे। कहते ज़्यादा नहीं थे।
पाखी में वो लंबे समय तक रहे, मगर आखिरी कुछ महीनों ने उन्हें बहुत दुख दिया। अपूर्व जोशी को उन्होंने कभी अश्लील तरीके सेे नहीं कोसा। हरदम एक दोस्त की तरह याद किया जिसने अपने माथे पर अचानक ;शुभ-लाभ' पोत लिया।लाइलाज बीमारी में कष्ट झेलते रहने से बेहतर शरीर की मुक्ति है। मुझे उनकी मौत पर बहुत अफसोस नहीं है। उनके अकेलेपन पर जीते-जी ही बहुत अफसोस रहा। उन्हें सब लोगों ने थोड़ा-थोड़ा पहले ही मार दिया था।
सुना कि आपकी याद में शोकसभाएं हो गईं। लोगों ने तरह-तरह से आपको याद किया। आपको बहुत अच्छा इंसान बताया होगा।
मुझे अब भी अभी यक़ीन नहीं है कि आप चले गए हैं। जब यकीन होगा तो फूटकर रोऊंगा। ऐसे बुरे दिनों में आपसे लिपटकर रोने का मन था। मगर इस शहर में लिपटकर रोने की सख्त मनाही है।
अलविदा 'बंधु' !

(बंधु-यही उनका संबोधन हुआ करता था)

निखिल आनंद गिरि

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

याद का आखिरी पत्ता

विजय छल पर निश्छल की कोलाहल पर शांति की युद्ध पर विराम की अनेक पर एक की हंसी पर आंसू की  मृत्यु एक उपलब्धि है जिस पर गर्व करना मुश्किल है तु...