मेरे भीतर एक मर्द है
जो गुस्से में मां को भी माफ नहीं करता ।
एक मर्द है जो दिन भर अभिनय करता है
मर्द होने का।
बेटी को पुचकारता है
हंसता खेलता है
और फटकारता है
अपने भीतर के मर्द को और संवारता है।
वह दिन भर पसीना बहाता है
पैसे कमाता है
गाड़ी चलाता है
ज़िम्मेदार मर्द होने का फ़र्ज़ निभाता है।
उसे चाय गरम चाहिए
पत्नी या प्रेमिका का
स्वभाव नरम चाहिए।
वह मर्द है हर घड़ी
इसका भरम चाहिए।
रात के आखिरी पहर
वह बिस्तर पर जाता है
मर्द का केंचुआ उतारकर
एक अंधेरी सुरंग में छिप जाता है
वहां कुछ अनजान चेहरे हैं
जहां वह मन लगाता है
फिर अचानक आईने में
अपना चेहरा देख डर जाता है
अब वह एक नकली पुतला है
अपनी ही परछाई का जला है
न चेहरे पर जादू है, न कोई चमत्कार है
अपनी ही मर्दानगी का भयानक शिकार है
वाह
जवाब देंहटाएंआभार
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