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जाना
तुम गईं.. जैसे रेलवे के सफर में बिछड़ जाते हैं कुछ लोग कभी न मिलने के लिए जैसे सबसे ज़रूरी किसी दिन आखिरी मेट्रो जैसे नए परिंदों...
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छ ठ के मौके पर बिहार के समस्तीपुर से दिल्ली लौटते वक्त इस बार जयपुर वाली ट्रेन में रिज़र्वेशन मिली जो दिल्ली होकर गुज़रती है। मालूम पड़...
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कौ न कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए....बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं....इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं....मन करता है रोज़ ...
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दिल्ली में कई बार ऐसा हुआ कि मैं और मेरे मुसलमान साथी किराए के लिए कमरा ढूंढने निकले हों और मकान मालिक ने सब कुछ तय हो जाने के बाद हमें क...
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जहां से शुरू होती है सड़क, शरीफ लोगों की मोहल्ला शरीफ लोगों का उसी के भीतर एक हवादार पार्क में एक काटे जा चुके पेड़ की सूख चुकी डाली प...
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विविध भारती के ज़माने से रेडियो सुनता आ रहा हूं। अब तो ख़ैर विविध भारती भी एफएम पर दिल्ली में सुनाई दे जाती है। मगर दिल्ली में एफएम के तौर...
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65 साल के हैं डॉ प्रेमचंद सहजवाला...दिल्ली में मेरे सबसे बुज़ुर्ग मित्र....दिल्ली बेली देखने का मन मेरा भी था, उनका भी...हालांकि, चेतावनी थ...
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दिल्ली की सड़कों पर कत्लेआम है, अच्छा है अच्छे दिन में मरने का आराम है, अच्छा है। छप्पन इंची सीने का क्या काम है सरहद पर, मच्छर तक ...
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शादियों को लेकर मुझे सिर्फ इस बात से उम्मीद जगती है कि इस दुनिया में जितने भी सफल पति दिखते हैं वो कभी न कभी एक असफल प्रेमी भी ज़रूर रहे हों...
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मुझे रह-रह कर अपना बचपन याद आ रहा है। एक स्कूल जहां रिक्शा घंटी बजाता आता तो हम पीछे वाले डिब्बे में बैठ जाते। रिक्शेवाला दरवाज़े की कुंडी ...
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मुझे याद है, जब मेरी ठुड्डी पर थोडी-सी क्रीम लगाकर, तुम दुलारते थे मुझे, एक उम्मीद भी रहती होगी तुम्हारे अन्दर, कि कब हम बड़े हों, ...