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याद का आखिरी पत्ता
विजय छल पर निश्छल की कोलाहल पर शांति की युद्ध पर विराम की अनेक पर एक की हंसी पर आंसू की मृत्यु एक उपलब्धि है जिस पर गर्व करना मुश्किल है तु...
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कौ न कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए....बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं....इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं....मन करता है रोज़ ...
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छ ठ के मौके पर बिहार के समस्तीपुर से दिल्ली लौटते वक्त इस बार जयपुर वाली ट्रेन में रिज़र्वेशन मिली जो दिल्ली होकर गुज़रती है। मालूम पड़...
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वो नाराज़ हुई तो तो उठकर चली गई किसी दूसरे कमरे में फिर किसी और कमरे में फिर एक दिन घर से बाहर चली गई फिर एक दिन दुनिया से बाहर कभी नहीं ल...