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शनिवार, 15 अगस्त 2015

खिड़की

खिड़की पर लड़कियां नहीं बैठती
नई दुल्हनें भी नही
पुरुष बैठतें है खिड़कियों पर
यह खिड़की रेलगाड़ी या बस भी हो सकती है
किसी देश की खिड़की
या दुनिया की कोई भी सभ्य खिड़की
खिड़कियों से दुनिया को इस तरह देखें
कितनी बराबर यानी एकरस है।

इस तरह डर लड़की को नहीं 
लड़की के गहनों को भी नहीं।
खिड़की पर बैठा पुरुष डरता है
बाहर के अनजाने पुरुष से
जो खिड़की से हाथ डालकर
कभी भी खींच सकता है
दूसरे पुरुष का सारा दंभ।

खिड़की के बाहर की स्त्रियां
फिलहाल सुरक्षित हैं
दो पुरुषों के आपसी संघर्ष में।
दुनिया चैन से सो रही है
खिड़की पर बैठे पुरुष

जाग रहे हैं बस।

निखिल आनंद गिरि

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