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रविवार, 9 अगस्त 2015

हो ना..

एक बिंदु से शुरू होती है हर रेखा
इस तरह
रेखाओं का होना
बिंदुओं का नहीं होना नहीं होता

जैसे दीवारों का होना
ईंटों का होना भी होता है।
बारिश का होना
बहुत-सी बूंदो का होना।
धुएं का होना
आग का होना
राख का होना।
दुनिया का होना
और अंधेरे का होना
उम्मीद का होना भी होता है

इस तरह नहीं होना किसी का

सबसे ज़्यादा मौजूद होना भी होता है
निखिल आनंद गिरि

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

आओ ना, 'गुलज़ार' कभी मेरी बालकनी में


जन्मदिन मुबारक...
चाँद को ऐसी-वैसी
जाने कैसी-कैसी
शक्लें देता रहता है..
आप लगा लो बाज़ी
उसके भीतर कोई
नटखट बच्चा रहता है...

७५ की उम्र में वर्ना,
कौन इश्क की बातें करता..
इतनी मीठी बोली में,
गप्पें, हंसी-ठिठोली में...
ऐसी इक आवाज़ की बस,
आवाज़ से झट याराने हों...
ऐसी खामोशी की जिनमे,
दुनिया भर के अफ़साने हों...

जाने कितने मौसम उसने..
किसी फकीरे की मानिंद,
अपने चश्मे से तोले हैं..
सब जादूगर, सारे मंतर...
उसकी फूंक के आगे...
बेबस हैं, भोले हैं....

आओ ना, 'गुलज़ार' कभी मेरी बालकनी में
यही बता दो चाँद तुम्हारा क्या लगता है...
चुपके चुपके थोड़ी विरासत ही दे जाओ...
दर्द का सारा बोझ, कहो अच्छा लगता है..
(गुलज़ार के लिए..)
निखिल आनंद गिरि

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

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कोमल उंगलियों में बेजान उंगलियां उलझी थीं जीवन वृक्ष पर आखिरी पत्ती की तरह  लटकी थी देह उधर लुढ़क गई। मृत्यु को नज़दीक से देखा उसने एक शरीर ...

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