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गुरुवार, 19 जुलाई 2012

वो कल भी पास-पास थे, वो आज भी क़रीब हैं..


मेरी मां ने आज तक कोई फिल्म पूरी नहीं देखी होगी। सती अनुसुईया, गंगा किनारे मोरा गांव जैसी अमर भोजपुरी फिल्में पूरी देखने के दौरान भी दो-तीन बार झपकी ज़रूर मार ली होगी। आप उसके सामने किसी भी दौर की अच्छी से अच्छी फिल्म लाकर रख दीजिए, फिर कुर्सी पर उसे बिठा दीजिए, फिल्म का ख़ूब बखान कीजिए कि ये सिनेमा के फलां तीसमारखां की फिल्म है वगैरह वगैरह, वो फिल्म देखने के साथ कभी दाएं, कभी बाएं ज़रूर डोलती नज़र आएगी। मां की सिनेमाई नींद के आगे किसी भी सुपरस्टार या महानायक की ऐसी की तैसी न हो जाए तो फिर कहिए। 'हाथी मेरे साथी' और 'स्वर्ग' ही हिंदी फिल्मों के नाम पर उनकी देखी गईं, बार-बार याद की गईं हिंदी फिल्में याद आती हैं। 'हाथी मेरे साथी' देखने और याद रखने का एक कारण अगर फिल्म में हाथी की मौजूदगी को मान लें तो भी 'स्वर्ग' फिल्म में सिर्फ और सिर्फ राजेश खन्ना ही वो किरदार थे, जिन्होंने मेरी मां को भी प्रभावित किया। हां, 'स्वर्ग' में गोविंदा भी मां की पसंद रहे हैं मगर राजेश खन्ना पहली पसंद हैं।

हमने वीसीआर पर घर में पहली बार स्वर्ग फिल्म एक साथ देखी थी। मैं तब स्कूल के शुरुआती सालों में पढ़ता था। मुझे याद है मेरे घर में ये फिल्म कई बार देखी जा चुकी है। वो भी सिर्फ मां की वजह से। मां को न तो वीसीआर चलाना आता है और न ही फिल्में देखने का शौक है। उसे तो ये भी नहीं पता कि कौन किस दौर में कौन सुपरस्टार हुआ है या फिर सुपरस्टार जैसी कोई चीज़ भी होती है। ये राजेश खन्ना का कोई जादू ही था कि मां उनका नाम जानती है, चेहरे से पहचानती है। जैसे बाद में मेरे टीवी या क्रिकेट देखने के शौक की वजह से वो अमिताभ को 'अमितभवा' और सचिन को 'सचिनमा' के नाम से पहचान चुकी है। और कई बड़े लोगों का नाम पूछकर कई बार देख चुका हूं, मगर उन्हें पहचानने में वो आत्मविश्वास नहीं दिखता।

बात 'स्वर्ग' की। तब समस्तीपुर में पापा ने अपनी कमाई से पहली बार ज़मीन ख़रीदी थी और हमारा घर बन रहा था। हम पापा की नौकरी की वजह से बिहार के जिस कोने में भी होते, घर में 'अपने घर' को लेकर कुछ न कुछ बात ज़रूर होती। मां 'अपने घर' को 'स्वर्ग' ही कहकर बुलाती। ये बहुत बाद में समझ आया कि सिनेमा और एक दर्शक का रिश्ता क्या हो सकता है। जिस महिला ने शायद ही कभी सिंगल स्क्रीन थियेटर में (ऊपर लिखी दो-चार फिल्मों को छोड़कर) क़दम रखा हो, शायद ही कभी मॉल या मल्टीप्लेक्स के दर्शन करने की सोच पाए, उसके लिए राजेश खन्ना घर का हिस्सा थे। इसके बाद शायद ही कुछ कहने को बचता है कि राजेश खन्ना क्यों हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहे जाते हैं। वो भी तब, जब राजेश खन्ना के गुज़रने पर 'हाथी मेरे साथी' या 'स्वर्ग' का ज़िक्र एक भी चैनल या वेबसाइट पर उनकी चुनिंदा फिल्मों में देखने को नहीं मिल रहा है। यानी एक सुपरस्टार की कामयाबी इसी में है कि उसकी दूसरे दर्जे की सफल फिल्म भी एक विशुद्ध हाउसवाइफ को उसका ऐसा फैन बना सकती है कि वो ताउम्र अपने घर का नाम उसकी एक फिल्म के नाम पर रखना चाहे।

जैसे मां की पसंद से बहू घर आए तो बेटे को उसका ख़याल रखना ही पड़ता है, ठीक वैसे ही राजेश खन्ना मेरे लिए बेहद ख़ास रहे। हालांकि मेरे लिए पहले सुपरस्टार का मतलब आज भी अमिताभ बच्चन ही हैं, लेकिन राजेश खन्ना को मैं पहला म्यूज़िकल सुपरस्टार ज़रूर मानता हूं। पहला ही क्यों, इकलौते सदाबहार म्यूज़िकल सुपरस्टार थे राजेश खन्ना। राजेश खन्ना को याद करने का मतलब बेशकीमती हिंदी गानों को याद करना है। भारतीय सिनेमा की उस विशेष परंपरा को याद करना है, जिसकी मिसाल दुनिया में और कहीं नहीं मिलती। वो शायद दुनिया के पहले ऐसे सुपरस्टार थे, जिन्होंने सिर्फ गानों के दम पर ऐसा स्टारडम हासिल कर लिया था। शायद यही एक कमज़ोरी भी रही कि अमिताभ बच्चन झट से उनकी कुर्सी खींच पाए और किशोर कुमार रातों रात अमिताभ की आवाज़ बन गए।

राजेश खन्ना को याद करते वक्त अचानक अमेरिका का चार्ल्स मैंसन याद आता है। वो अमरीकी अपराध की दुनिया का 'कल्ट गुरु ' रहा। गुनाहों का देवता। उसने अपनी एक मायावी दुनिया बनाई थी जिसे मैंसन फैमिली कहते थे। उसके लिए रोमांस की हद के पार अपराध का वो चरम था, जिसके दम पर उसे लगता था कि जब एक दिन कयामत आएगी और सिर्फ उसी के अनुयायी जीवित बचेंगे। राजेश खन्ना ने रोमांस की दुनिया में वही 'कल्ट' पैदा किया। रोमांस के देवता। एक ऐसा भरम जो उस दौर के भारतीय हालात में हर नागरिक जीना चाहता था। उम्मीदों की आखिरी डोर थामकर ये यक़ीन बचाना चाहता था कि आज़ाद भारत में अब भी वो सुबह आनी बाक़ी है, जहां सब कुछ राजेश खन्ना की तरह पलक झपकते ही रुमानी हो जाना है। कभी-कभी ये भी लगता है कि अगर राजेश खन्ना न होते तो आज भारतीय जनमानस में जिस कदर हर सेलेब्रिटी के आगे-पीछे आंखे मूंद कर डोलने का चलन है, वो बीमारी हमारे समाज से कोसों दूर रहती। ऐसा कहते हुए मोनिका बेदी से लेकर कसाब के वकील तक याद आ रहे हैं।

अपने आखिरी दिनों में किया गया राजेश खन्ना का वो पंखे का विज्ञापन भी याद आ रहा है, जिसमें राजेश खन्ना की एक्टिंग का सबसे बुरा इस्तेमाल ये कहलवाने में हुआ कि मेरे फैन्स मुझसे कोई नहीं छीन सकता। हालांकि, ये बात बिल्कुल सच है कि राजेश खन्ना के फैन्स हमेशा बचे रहेंगे। जब तक धरती पर प्यार बचा है। जब तक भारतीय सिनेमा बचा है। जब तक गीत लिखने वालों और संगीत रचने वालों की कद्र बची है।

निखिल आनंद गिरि

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