tag:blogger.com,1999:blog-3985184180350538398.post2213821058706158044..comments2024-01-29T13:49:43.930+05:30Comments on आपबीती: एक 'लुल' दर्शक का मज़ाक उड़ाती एलियन आत्मकथा उर्फ 'पीके'Nikhilhttp://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3985184180350538398.post-6832351503894424042015-01-05T08:18:36.043+05:302015-01-05T08:18:36.043+05:30कुलवंत जी, फिल्म मेरे लिए समाज का हिस्सा ही है. इस...कुलवंत जी, फिल्म मेरे लिए समाज का हिस्सा ही है. इसी चश्मे से देखता हूं सारी फिल्में. मुझे फिल्म की मंशा पर कोई शक नहीं मगर जहां-जहां लगा आलोचना करनी चाहिए, की. हो सकता है उसका वज़न ज़्यादा हो तो एकतरफा लग रहा है.Nikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3985184180350538398.post-24276662293709252782015-01-05T08:16:03.152+05:302015-01-05T08:16:03.152+05:30हाहाहा.प्रकाश गोविंद जी, आपने तो फतवा ही जारी कर द...हाहाहा.प्रकाश गोविंद जी, आपने तो फतवा ही जारी कर दिया भाई. इतना निराश नहीं होते. <br />और देना ही है तो 211 रुपये दीजिए. 11 रुपये में दबंग भी नहीं देख पाऊंगा.<br />ब्लॉग पर आते रहिए. यहां और भी 'फालतू' चीज़ें लिखता हूं.Nikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3985184180350538398.post-90864879348872398972015-01-05T01:08:29.954+05:302015-01-05T01:08:29.954+05:30मैं आपको 11 रुपये दूंगा ,,,,, प्लीज आईंदा किसी दूस...मैं आपको 11 रुपये दूंगा ,,,,, प्लीज आईंदा किसी दूसरी किसी फिल्म की विवेचना प्रस्तुत न करें ! जिसका काम उसी को साजे ,,, और करे तो डंडा बाजे ! मैंने इससे ज्यादा सतही समीक्षा आज तक नहीं पढ़ी ! फ़िल्म देखना अलग बात है और उसे समझना एकदम अलग बात है ,,,,,,,,,,,, आपके बस की बात नहीं कि ऐसी फ़िल्म पे आप बात कर सकें ! आप दबंग देखिये !<br /> प्रकाश गोविंदhttps://www.blogger.com/profile/15747919479775057929noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3985184180350538398.post-25306591943611316622015-01-03T12:24:33.646+05:302015-01-03T12:24:33.646+05:30आनंदगिरि चूके हुए हैं, आपका चश्मा सामाजिक था। आप फ...आनंदगिरि चूके हुए हैं, आपका चश्मा सामाजिक था। आप फिल्म देख रहे हैं। आत्मकथा नहीं। और कथाकार अपनी बात कहने के लिए किसी न किसी आधार बनाता है। जैसे पुरातन कथाओं में चिडियों का सहारा लिया जाता था, कुछ कहानियों में। फिल्म का संदेश देती है। हालांकि बिजनस को ध्यान में रखकर बनाई गई है। Kulwant Happyhttps://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3985184180350538398.post-60881704393961258072014-12-28T12:43:27.938+05:302014-12-28T12:43:27.938+05:30:D :D बिलकुल सही कहा आपनें.. मुझे भी कुछ कुछ ऐसा ह...:D :D बिलकुल सही कहा आपनें.. मुझे भी कुछ कुछ ऐसा ही लगा था....Prashant Suhanohttps://www.blogger.com/profile/13063081005432678937noreply@blogger.com