शुक्रवार, 14 मई 2021

अकेलेपन के नोट्स - 1

काम के सिलसिले में शायद तीन-चार साल पहले दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में में लंच के लिए गया था. मेरे नम्बर पर तब से वहाँ के ऑफर आते रहते हैं. मजाल है कि मैंने एक बार भी रिप्लाई किया किया हो.उस लड़की के लिए कभी कभी तरस भी आता रहा मगर कुछ खास नहीं.
इधर कुछ दिनों से फिर मेसेज ज़्यादा आने लगे हैं. होम डिलिवरी के ऑफर ज़्यादा. सोच कर ही रूह बैठ जाती है कि इस आइसोलेशन के दौर में फाइव स्टार होटल का खाना घर मंगवाना कितना बेवकूफ़ी भरा खयाल है. उस लड़की ने कहा - "मंगा लीजिए सर, होटल मे आजकल कोई नहीं आता. हमारी सैलरी भी कम आती है" 
मैंने कुछ जवाब नहीं दिया मगर उस लड़की से मिलने का मन हुआ. अपने हाथ की बनी खिचड़ी खिलाने का. उसकी उम्मीद एक ग़लत आदमी से है. 
हम सब किसी ग़लत आदमी से सब सही हो जाने की उम्मीद में हैं. 
भरम में जीना अलग मज़ा है. 

निखिल आनंद गिरि

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर कुछ कहिए प्लीज़

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

मृत्यु की याद में

कोमल उंगलियों में बेजान उंगलियां उलझी थीं जीवन वृक्ष पर आखिरी पत्ती की तरह  लटकी थी देह उधर लुढ़क गई। मृत्यु को नज़दीक से देखा उसने एक शरीर ...

सबसे ज़्यादा पढ़ी गई पोस्ट