शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

डायरी फिर से

ज़िंदगी में एक अफसोस कुछ न कर पाने का होता है। लेकिन ज़्यादा बड़ा अफसोस होता है बहुत-सी अधूरी चीजें करने का। उम्र हमे वापस वो अधूरापन भरने का मौक़ा ही नहीं देती।
शादी हुई थी मेरी तो उसके ठीक बाद झूठ-सच बोलकर सबसे पहले तुम्हें अपने घर लाया था। उस एक घटना से कितना तूफान रहा, बता नहीं सकता। मगर कभी अफसोस नहीं रहा अपने किये का।
आज लगता है तुम कोसों दूर चली गयी हो। पता नहीं कहां हो। कहां हम मीलों साथ चलते थे, बिना थके, कहां बिल्कुल अकेले डूबता जाता हूँ रोज़...
शादी प्रेमिकाओं का सबसे ज़्यादा नुकसान करती हैं।

निखिल आनंद गिरि

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