गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

रिश्तों की तरह होती हैं कुछ कविताएं...

हमारी चुप्पियों के बीच पुल की तरह था मुस्कुराना....
जिस पर आराम से तैरता रहा एक रिश्ता...
तुम किसी सूरज की तरह,
उग आती आधी रात में भी...
और मेरी सुबह थोड़ी लंबी हो जाती...
जैसे कुछ कविताएं अधूरी हैं तो सिर्फ इसीलिए,
कि भूल जाता हूं कई बार तुम्हारे नाम का मतलब
वैसे ही कई रातें इसीलिए अधूरी...
कि उगा ही नहीं मेरा सूरज...

वो धुन याद ही होगी,
जो आधी रात में ट्रेन हमें सुनाकर गुज़र जाती..
और तुम खिड़कियां बंद कर लेतीं...
हम जागते देर तक नींद में...

समंदर की लहरों ने नहीं देखी समंदर की गहराई,
मगर एक रिश्ता तो है...
सूरज की किरणों ने सूरज के सीने में झांककर भी नहीं देखा...
मगर तपिश है
गुनगुनी धूप है धरती पर...

कभी ट्रेन की खिड़की से दिख जाती हैं किताबें,
जिन्हें पढ़ नहीं पाते...
मगर याद रहती हैं तस्वीरें...
और हम सोचते रहते हैं यात्रा भर,
किताबों की लिखावट, मुलायम पन्ने वगैरह वगैरह....

रिश्तों की तरह होती हैं कुछ कविताएं...
मजबूरन ख़त्म करनी पड़ती है...
कविताओं की तरह होते हैं कुछ रिश्ते
बार-बार पढकर रुलाई आती है...

निखिल आनंद गिरि

13 टिप्‍पणियां:

  1. गहन खूबसूरत एहसास ....कुछ अनकहा सा है इस कविता में जो एक टीस दे रहा है ....कुछ ऐसा जिसे थामा हुआ है मन ....
    बहुत सुंदर रचना ...
    शुभकामनायें ...

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  2. कुछ रिश्ते...सच....कविताओं की तरह होते हैं...उनसे रुलाई का ही रिश्ता होता है..
    सुन्दर कविता.

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  3. बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने....

    जवाब देंहटाएं
  4. its nice but wanna say ur prose is much enchanting than urs poetry. :)

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  5. its nice but wanna say ur prose is much enchanting than urs poetry. :)

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. बहुत जी अच्छी लगी। एक एक एहसास का नमूना।

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  8. बहुत ही अच्छी लगी। एक एक एहसास का चित्रण।

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