रविवार, 18 दिसंबर 2011

याद आता है फिर वही देखो...

उसकी भी क्या है ज़िंदगी देखो
रोज़ करता है खुदकुशी देखो

यूं तो कई आसमान हैं उसके,
खो गई है मगर ज़मीं देखो

यूं भी क्या ख़ाक देखें दुनिया को
जो ज़माना कहे, वही देखो

कल  कोई आबरू लुटी फिर से,
आज ख़बरों में सनसनी देखो

जाते-जाते वो छू गया मुझको
दे गया अनकही खुशी देखो

सबके कहने पे जिये जाता है
कितना बेबस है आदमी देखो

बारहा जिसको भूलना था 'निखिल'
याद आता है फिर वही देखो...

8 टिप्‍पणियां:

  1. यूं तो कई आसमान हैं उसके,
    खो गई है मगर ज़मीं देखो
    कल कोई आबरू लुटी फिर से,
    आज ख़बरों में सनसनी देखो

    जाते-जाते वो छू गया मुझको
    दे गया अनकही खुशी देखो


    प्यारी गज़ल

    जवाब देंहटाएं
  2. थी तो शाम से ही लैपटॉप पर प्यारी गज़ल
    पढ़ा इतनी रात गये! अपनी बदनसीबी देखो

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया गजल. मकता पढ़ कर ग़ालिब का शेर याद करा दिया निखिल:

    मुहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का
    उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह निखिल साहब, वाह...क्या बात है..

    बारहा जिसको भूलना था निखिल
    याद आता है फिर वही देखो

    बहुत ख़ूबसूरत लाइन है भाई...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत प्यारी गजल है मेरे दोस्त...

    जवाब देंहटाएं

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