गुरुवार, 14 जुलाई 2011

हम भी कई रोज़ से जिए ही नहीं...

तमाम राहें जो हमारी न हुईं...

तमाम किस्से जो हमारे न हुए...

और वो चेहरे जो अजनबी ही रहे...

छोड़ आएंगे कहीं धोखे से....


अपनी ही छत पे सभी चांद उगें,

अपने उजालें हों, सूरज भी सभी...

आसमां पर हो सिर्फ अपना हक़...

ज़िंदगी नज़्म से भी हो सुरमई...


एक कप चाय जो कभी पी नहीं

और वो गीत जिनकी धुन भूले

एक वो ख़त जिसमें अधूरा-सा कुछ

उस एक शाम....सब बांटेगे हम...


एक तारीख में लिपटी हुई यादें सारी

एक मुस्कान में लिपटे हुए सब मौज़ूं...

तेरी नाराज़ नज़र, मेरी गुस्ताख ज़बां...

सब अदालत तेरी, गुनाह सब मेरे..


जैसे जन्नत मिले है मौत के बाद..

तुझसे मिलना है कई साल के बाद

तुझसे मिलकर ही मेरे सरमाया

तय करेंगे इस रिश्ते की मियाद...


आओ कि इस शहर में जान आए

हम भी कई रोज़ से जिए ही नहीं....

निखिल आनंद गिरि

9 टिप्‍पणियां:

  1. एक तारीख में लिपटी हुई यादें सारी

    एक मुस्कान में लिपटे हुए सब मौज़ूं...

    तेरी नाराज़ नज़र, मेरी गुस्ताख ज़बां...

    सब अदालत तेरी, गुनाह सब मेरे..faisla jo ho

    जवाब देंहटाएं
  2. तमाम राहें जो हमारी न हुईं...
    तमाम किस्से जो हमारे न हुए...
    और वो चेहरे जो अजनबी ही रहे...
    छोड़ आएंगे कहीं धोखे से....


    वाह !!!

    जवाब देंहटाएं
  3. काश कह देने जितना ही आसान होता छोड़ आना...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही बढि़या ...।

    जवाब देंहटाएं
  5. आओ कि इस शहर में जान आए

    हम भी कई रोज़ से जिए ही नहीं....

    well said.....

    जवाब देंहटाएं
  6. jee lo ...........
    thode aansoo.
    thodi hasi ....
    thoda pyaar ........
    thodi takraar .........

    bina jaane ki हम भी कई रोज़ से जिए ही नहीं....

    जवाब देंहटाएं
  7. एक तारीख में लिपटी हुई यादें सारी

    एक मुस्कान में लिपटे हुए सब मौज़ूं...

    बहुत सुंदर........

    जवाब देंहटाएं
  8. ek cup chai jo pi hi nahi kabhi...
    teri naraz nazar..meri gustakh zaba..
    aao ki is shaher me jaan aae hm bhi kayi roz se jiye hi nahi...


    khoobsurat!
    khoobsurat!
    khoobsurat!

    जवाब देंहटाएं

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