इतना तबाह कर कि तुझे भी यक़ीं न हो,
इक था भरम के वास्ते, वो दोस्त भी न हो....
महफिल से वो गया तो सभी रौनकें गईं..
ऐसा न हो वो आए, मगर ज़िंदगी न हो
ठिठुरे हैं जो नसीब, उनका अलाव बन...
सूरज ही क्या कि सबके लिए रौशनी न हो
मेरी ही नज़र छीन ले, कोई शख्स क्यूं गिरे...
मौला तेरे किरदार में कोई कमी न हो...
तौबा कभी न चांद पर, हरगिज़ करेंगे इश्क
उतरे कहीं खुमार, तो पग भर ज़मीं न हो...
साए थे, शोर था बहुत, इतना सुन सका...
कंक्रीट के जंगल में कोई आदमी न हो...
मंज़िल मिली तो कह गए, बाक़ी है कुछ सफ़र
वो उम्र क्या कि उम्र भर आवारगी न हो
ले जाओ सब ये शोहरतें, ये भीड़, ये चमक
रोने के वक्त हंसने की बेचारगी न हो...
निखिल आनंद गिरि
इक था भरम के वास्ते, वो दोस्त भी न हो....
महफिल से वो गया तो सभी रौनकें गईं..
ऐसा न हो वो आए, मगर ज़िंदगी न हो
ठिठुरे हैं जो नसीब, उनका अलाव बन...
सूरज ही क्या कि सबके लिए रौशनी न हो
मेरी ही नज़र छीन ले, कोई शख्स क्यूं गिरे...
मौला तेरे किरदार में कोई कमी न हो...
तौबा कभी न चांद पर, हरगिज़ करेंगे इश्क
उतरे कहीं खुमार, तो पग भर ज़मीं न हो...
साए थे, शोर था बहुत, इतना सुन सका...
कंक्रीट के जंगल में कोई आदमी न हो...
मंज़िल मिली तो कह गए, बाक़ी है कुछ सफ़र
वो उम्र क्या कि उम्र भर आवारगी न हो
ले जाओ सब ये शोहरतें, ये भीड़, ये चमक
रोने के वक्त हंसने की बेचारगी न हो...
निखिल आनंद गिरि
12 टिप्पणियां:
मेरी ही नज़र छीन ले, कोई शख्स क्यूं गिरे...
मौला तेरे किरदार में कोई कमी न हो...
awsome
क्या कहूँ …………हर शेर लाजवाब्।
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल है.
ठिठुरे हैं जो नसीब, उनका अलाव बन...
सूरज ही क्या कि सबके लिए रौशनी न हो
और
ले जाओ सब ये शोहरतें, ये भीड़, ये चमक
रोने के वक्त हंसने की बेचारगी न हो...
आप के शेर संजो लिए हैं.आप की कलम को सलाम .
तौबा कभी न चांद पर, हरगिज़ करेंगे इश्क
उतरे कहीं खुमार, तो पग भर ज़मीं न हो...
well said.....
चाँद वाला शेर सब से लाजवाब. ठिठुरे नसीब भी बढ़िया.
मंज़िल मिली तो कह गए, बाक़ी है कुछ सफ़र
वो उम्र क्या कि उम्र भर आवारगी न हो
....................sach hai ...मंजिल मिलने के बाद जो याद रह जाता है , वो सफ़र ही होता है , खालिस मंजिल नहीं ..
तौबा कभी न चांद पर, हरगिज़ करेंगे इश्क
उतरे कहीं खुमार, तो पग भर ज़मीं न हो...
bahut umda sher hai ye nikhil bhai..baki ghazal bhi sahi hai kuch takniki gadbadiyan hain bas...
महफिल से वो गया तो सभी रौनकें गईं..
ऐसा न हो वो आए, मगर ज़िंदगी न हो
क्या बात कही है!!
हर शेर लाजवाब्।
कमाल, कमाल, कमाल...
Bahut hi umda ghazal...... sach me kafi acha likhte hai aap.... keep up!
इतना तबाह कर कि तुझे भी यक़ीं न हो,
इक था भरम के वास्ते, वो दोस्त भी न हो..
Ye sher sabse jyada touching laga mujhe...
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