शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

तुम नहीं हो तो हर खुशी फीकी...

प्यास इतनी कि ज़िन्दगी फीकी,
तुम नहीं हो तो हर खुशी फीकी..
एक माहताब-ए-हुस्न के आगे,
चाँद की सारी रौशनी फीकी..
चन्द अल्फ़ाज़ ने ही कर डाली,
उम्र भर की ही दोस्ती फीकी..
दर्द की सीढियाँ न खत्म हुईं,
आँसुओं की पड़ी नदी फीकी..
जिस्म रिश्ते के दरमियां आया,
लम्स की ताज़गी हुई फीकी...
शहर की रौनकें न कर डालें,
मां के आँचल की ज्योत ही फीकी....

लम्स-छुअन
निखिल आनन्द गिरि 
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2 टिप्‍पणियां:

  1. उम्र भर की ही दोस्ती फीकी..
    दर्द की सीढियाँ न खत्म हुईं,
    आँसुओं की पड़ी नदी फीकी..
    जिस्म रिश्ते के दरमियां आया,

    खासकर इन पंक्तियों ने रचना को एक अलग ही ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया है शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास...बहुत सुन्दर..

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